________________ कान्ता मे समतैवैका, ज्ञातयो मे समक्रियाः। बाह्यवर्गमिति त्यक्त्वा, धर्मसंन्यासवान् भवेत् // 3 // प्रिय प्रिया समता और ना जग बाह्य ना अच्छा लगे। जिन साधुओं की एक किरिया वही ज्ञाति मुझे लगे। सब बाह्य ऋद्धि समृद्धि छोडूं सकल बंधन तोडकर // 3 // एक समता ही मेरी पत्नी है और समान आचरण वाले साधु मेरे ज्ञातिजन है (ऐसा विचार कर) इस प्रकार बाह्य वर्ग का त्यागकर धर्म - संन्यासी होता है। A sense of equanimity is closest to the heart Sadhus, who behave with equanimity appeal to me. Such thoughts after renunciation of the world are the ones that expand my vistas. By abandoning all relationships can give up all the false outer grandeur and affluence. .. * {59}