________________ जागर्ति ज्ञानदृष्टिश्चेत्, तृष्णाकृष्णाहिजाड्.गुली। पूर्णानन्दस्य तत्कि स्याद्, दैन्यवृश्चिकवेदना // 4 // तृष्णा भयंकर-अति भयंकर कृष्ण नाग समान है। उसके ज़हर के नाश में वर ज्ञान मंत्र समान है। तत्त्व ज्ञान दृष्टि खुल गई है पूर्ण आनंद चेतना। नहीं हो सकेगी दीनता-संबंधी वृश्चिक वेदना // 4 // तृष्णा रूप काले नाग के जहर का नाश करने वाले गारुड़ी के मंत्र समान तत्त्व ज्ञान रूपी दृष्टि जिसकी जागृत है, उस पूर्णता के आनंद का उपभोग करने वाले ज्ञानी को दीनता रूप बिच्छु के डंक की वेदना क्यों हो सकती है ? Greed is like a terrible black snake. Knowledge acts like the magic chant that can kill its poison. A man who has acquired bliss and totality through right knowledge can never be affected by the pain generated from the sting of poverty, which is like that of a scorpion. {4}