________________ RODAPOORose | कर्म-विपाक-चिंतन-21 - - दुःखं प्राप्य न दीन: स्यात्, सुखं प्राप्य च विस्मितः / मुनिः कर्मविपाकस्य, जानन् परवशं जगत्।।1।। जाने मुनीश्वर कर्मफल परवश जगत में है सदा। यों जानकर मुनिराज सुख को प्राप्त कर नहीं हो मुदा॥ नहिं दीन बनते प्राप्त कर दुख दर्द पीड़ा जगत में। मुनि कर्म फल चिंतन करे सुख आत्म चिंतन एक में // 1 // कर्म विपाक वश पराधीन बने इस जगत को जानते हुए साधु दुःख पाने पर दीन नहीं बनते व सुख पाने पर विस्मित नहीं होते। The fruition of karma Kowing that this world is shackled by the karma generated effects, a Sadhu neither gets perturbed by sorrows nor does he get excited by pleasures. {161}