________________ यः स्नात्वा समताकुण्डे, हित्वा कश्मलजं मलम्। पुनर्न याति मालिन्यं, सोऽन्तरात्मा परः शचिः // 5 // सम रूप कुंडे स्नान करके पाप मल धोता सदा। फिर शुद्ध आत्म मलीनता को प्राप्त ना होता कदा॥ वह अंतरात्मा है परम पावन अमल निर्मल बना। कर शुद्ध तूं रख शुद्ध तूं निज आत्म को अब हे मना // 5 // जो समता रूप कुण्ड में स्नान करके पाप से उत्पन्न मैल का त्याग कर दुबारा मलिन नहीं होता, वह अन्तरात्मा परम पवित्र है। Those who wash away their sins in the tub full of equanimity and never become unclean again are possessed of a pure soul. {109}