________________ स्पहावन्तो विलोक्यन्ते, लघवस्तृणतूलवत्। महाश्चर्य तथाप्येते, मज्जन्ति भववारिधौ॥ 5 // तृण आक सम हलके हैं फिर भी स्पृहाकारक डूबते। करते स्पृहा जो वे सदा भव वारि में गल डूबते॥ हलका हमेशा तैरता फिर डूबते ये क्यों सदा। आश्चर्य है पर ये स्पृहा देती डूबोती सर्वदा // 5 // स्पृहावान् पुरुष तृण और आक की रूई के समान हल्के दिखते हैं फिर भी संसार समुद्र में डूब जाते हैं, यह आश्चर्य है। . It is astonishing how those who are attached appear to be as light as straw or perhaps puffs of cotton wool, and yet they get drowned; drowned in their attachments. Such indeed is the characteristic of attachment. {93}