________________ या शान्तैकरसास्वादाद्भवेत् तृप्तिरतीन्द्रिया। सा न जिह्वेन्द्रियद्वारा, षड्रसास्वादनादपि // 3 // इस शान्त के आस्वाद से जो अतीन्द्रिय तप्ति मिले। मस्तिष्क मन वन सघन उपवन में सरस सरसिज खिले॥ कोई करे आहार षट् रस जीभ से तो भी नहीं। तृप्ति न वैसी. पा सके जो साधु ने तृप्ति लही॥३॥ शान्त रस रूप अद्वितीय रस के अनुभव से जो अतीन्द्रिय तृप्ति होती है वह जिह्वेन्द्रिय द्वारा षट् रस के भोजन से भी नहीं हो सकती। The transcedental satiety that can be acquired through indulgence in the unique nectar of peace can never be acquired even by a meal which is sumptuous and capable of exciting all the six tastes.. - {75}