________________ 173 टि 1 कल्पलताविवेके सौवीरी मध्यमग्रामे- [भ. ना शा. 33 . 5 | स्वामी सदैव (उन्मत्तयौगन्धरायणे) 43 17 28 29] स्वास्थ्याभ्याससमुत्था [भ.ना.शा. 292 24 स्कन्दास्यविरामा त्यो त्यो मणिमाला 215 13 स्खलिताघूर्णितनयनः [भ.ना शा. 290 11 | हन्तुमेव प्रवृत्तस्य [भामहका. 1 51] 13 20 हरस्तु किञ्चित् [कु. सं 3 67] 142 4 स्त्रियो नरपत्तिर्वह्नि हरयुक्तोऽन्तरे वर्णे 207 15 स्थायिनोऽर्थे प्रवर्तन्ते [शि.पा.व. 40 हर्षप्रसादजनिता. 313 19 हास्यशृङ्गारकरुणे [भ. ना. शा. 104 13 स्मरनवनदीपूरेणोढाः स्मरारातेः 162 19 हास्यशृङ्गारयोः कार्यों [भ. ना. शा. 101 स्मितवदनमधुररागो [भ. ना. शा. 290 9 / 19 38] स्यात् षड्जमध्यमा [भ ना. शा. 33 15 हिययट्ठिअमन्नु खु 148 ___28 39] 152 20 स्वप्नान्तरे हुमि अवहत्थिअरेहो - [विषमबाण - 164 11 स्वराः षडजादयः लीलायाम् / ] 174 स्वसामर्थ्यवशेनैव [ध्व. का 11] 113 12 हेतुः प्रदीपदीप्रत्वम् 69 23 स्वस्था भवन्ति मयि 183 22 | हेलाऽपि कस्यचिद् जीवति धार्तराष्ट्रा [वेणीसंहार. 1] हे हेलाजितबोधिसत्त्व स्वं स्वं निमित्तमासाद्य [भ.ना शा. 7] 82 24 315 25 | होइ ण गुणाणुराओ स्वामी क्रमागत 151 16