________________ शब्दालङ्कारदर्शनम् 1210543 / 1351024 / 1351042 / 1310524 / 1310542 / 1451023 / 1451032 / 1410523 / 1410533 / 2151034 / 2151043 / 2110534 / 2110543 / 2351041 / 2310541 / 2451031 / 2410531 / 3151024 / 3151042 / 3110524 / 3110542 / 3251041 / 3210541 / 3451021 / 3410521 / 5 4151023 / 4151032 / 4110523 / 4110532 / 4251031 / / 4210531 / 4351021 / 4310521 / 58962 / 58963 / 58964 / 58972 / 58973 / 58974 / 5101162 / 5101163 / 5101164 / 5101172 / 5101173 / 5101174 / 1051162 / 1051163 / 1051164 / 1051172 / 1051173 / 1051174 / 108962 / 10 108963 / 108964 / 108972 / 108973 ! 108974 / द्वितीयस्मिन् तयैव सप्तत्या 'चन्द्रवर्मनि भवन्ति रनभसाः' इति चन्द्रवर्मनि, द्वाभ्यां 'द्रुतविलम्बितमस्ति नभौ भरौ' इति द्रुतविलम्बिते, द्वाभ्यां 'स्कन्दास्यविरामात्यौ त्यौ मणिमाला' इति मणिमालायां, चतुर्विंशत्या 'ननररकलिता प्रभाश्चेन्द्रियैः' इति प्रभायां द्वाम्यां च शतम् / 1159108 / 1110958 / 5981011 / 1098511 / 1523104 / 15 1524103 / 1102354 / 1102453 / 1532104 / 1534102 / 1103254 / 1103452 / 1542103 / 1543102 / 1104253 / 1104352 / 2531104 / 2541103 / 2103154 / 2104153 / 3521104 / 3541102 / 3102154 / 3104152 / 4521103 / 4531102 / 4102153 / 4103152 / 5108911 / 1058911 / 20 __ तृतीयस्मिंश्चतुर्थे पादे संयुक्तप्रथमवेर्णत्वे जलधरमालायां त्रुटत्सु द्वादशसु नव / मालिन्यामष्टसु च प्रथमपादच्छन्दःस्वेव द्वाभ्यामष्टभिश्चतुर्विंशत्या षोडशभिश्च पञ्चाशत् / चतुर्थे च पादे द्वितीयपादवत् शतमेव समुत्पद्यन्ते। ये च चन्द्रवर्मनि द्वौ द्वौ, द्रुतविलम्बिते द्वौ द्वौ, मणिमालायां चतुर्विंशतिरष्टौ च प्रभायां द्वौ द्वाविति प्रथमे पादे त्रिंशत् तृतीये च चतुर्दश सम्भवन्ति, ते परिगणनमभिमतं विहन्युरिति नेष्टाः / अत एव तच्छन्दःपरिग्रहो- 25 ऽप्यनयोने कृतः / ये तु चन्द्रवर्त्मनि लध्वन्तैरष्टभिः / 1159610 / 1159710 / 1159106 / 1159107 / 1110956 / 1110957 / 1110965 / 1110975 / प्रमिताक्षरायां चतुर्भिः / 5111096 / 5111097 / 1011596 / 1. -वर्णत्वेन पूर्वगुरुत्वे ग. //