________________ शब्दालङ्कारदर्शनम् . 209 4276 / 4287 / 4976 / 4987 / 5364 / 5674 / 5687 / 8364 / 8574 / 8576 / 8674 / 9164 / 9264 / 9476 / 9487 / ___ तुर्ये च श्लोकस्याऽन्यथाऽनुपपत्त्या क्रियाकारकादिपदयोगोऽवश्यमभ्युपगन्तव्य इत्यष्टमनवमपदयोः सर्वत्राऽवस्थितयोरापातलिकायां चतुर्णा पदानां योगेऽष्टभ्यश्चतुर्भिः पञ्चानां योगे पञ्चविंशतेदशभिः प्राच्यवृत्तिद्वये न चेति षोडशभिर्वैतालीये चतुर्णा योगे द्वात्रिंशत- 5 योगे दशभ्य एकेन पञ्चभ्यः प्राच्यवृत्तिभ्यश्चैकेनेति द्वाभ्यां च चतुर्विंशतिः समवतिष्ठन्ते / 1983 / 2983 / 9183 / 9283 / 18649 / 28649 / 56948 / 85249 / 85942 / 86149 / 86249 / 86942 / 95648 / 98642 / प्रा 58249 / प्रा 58942 / 1987 / 2987 / 9187 / 9287 / प्रा 10 58964 / 85964 / 85963 / प्रा 58963 / ये च तुर्य एवाऽऽपातलिका प्राच्यवृत्तौ पदचतुष्टययोगे सप्त / 5783 / 7341 / 7342 / 7348 / 7349 7583 / 7683 / वैतालीयप्राच्यवृत्तावेकः / 7364 / औपच्छन्दसके नव चेति / 1273 / 1973 2173 / 2973 / 4173 / 5173 / 8173 / 9173 / 9273 सप्तदश / तेष्वष्टमनवमपदयोगो न विद्यत इति न केचिदङ्गीकृताः। 15 यस्तु पञ्चविंश औपच्छन्दसकप्राच्यवृत्तावादाववनिपदे परिस्थाप्यमाने विवक्षितश्च सन्धिर्भवतीति नयेन विकल्पः सम्भवति / 48963 / स पञ्चसु काव्यप्रभेदेषु संहितां न करोमीति स्वेच्छा सकृदपि दोष इति दुष्टवादूरापास्तः / ये तु प्रथमे आपातलिकोदीच्यवृत्तौ चतुर्णा पदानां योगे षट् / 5483 / 6341 / 6342 / 6348 / 6349 / 6583 / औपच्छन्दसकवैतालीययोश्चैकस्मिन्नुदीच्यवृत्तिद्वयेन सह षोडश / 20 1263 / 1473 / 1963 / 2163 / 2473 / 2963 / 4573 / 4673 / उ 5473 / 5673 / उ 6573 / 8573 / 8673 / 9163 / 9263 / 9473 / अपरस्मिन्नुदीच्यवृत्तिचतुष्टयेन समं षड्विंशतिः। 1264 / 1476 / 1487 / 1964 / 2164 / 2476 / 2487 / 2964 / 4576 / 4587 / 4687 / 5364 / उ 5476 / उ 5487 / 5674 / 5687 / उ 6574 / 25 उ 6587 / 8364 / 8574 / 8576 / 8674 / 9164 / 9264 / 9476 / 9487 / द्वितीयस्मिन् वैतालीये एव पञ्चानां पदानां योगे पञ्चभिः प्राच्यवृत्तिभिः सह दश। प्रा 46587 / 48576 / 56487 / प्रा 58164 / प्रा 58264 / प्रा 58476 /