________________ ( 75 ) यदि वह पति के न रहने पर भी जीवित रहती तो हमारे लिये, बन्धु'बान्धवों के लिये तथा अन्य दयावान् पुरुषों के लिये शोक का विषय अवश्य होती / / 33 // वह तो अपने पति का बध सुनकर तत्काल ही उसके पीछे चली गयी, अतः वह विद्वान् पुरुषों के लिये शोक के योग्य नहीं है / / 34 // ___ शोक तो उन स्त्रियों के लिये करना उचित होता है जो पति से वियुक्त होकर भी जीवित रहती हैं, किन्तु जो साथ ही प्राण का परित्याग कर देती हैं वे कदापि शोक के योग्य नहीं होतीं। अपना कर्तव्य समझनेवाली मेरी पुत्रवधू ने तो भर्ता के वियोग का अनुभव ही नहीं किया // 35 // न मे मात्रा न मे स्वस्रा प्राप्ता प्रीतिनृपेशी / श्रुत्वा मुनिपरित्राणे हतं पुत्रं यथा मया // 41 // शोचतां बान्धवानां ये निश्वसन्तोऽतिदुःखिताः। म्रियन्ते व्याधिना क्लिष्टास्तेषां माता वृथाप्रजा॥ 42 // संग्रामे युध्यमाना येऽभीता गोद्विजरक्षणे / क्षुण्णा शस्त्रैर्विपद्यन्ते त एव भुवि मानवाः // 43 // अर्थिनां मित्रवर्गस्य विद्विषां च पराङ्मुखम् // यो न याति पिता तेन पुत्री माता च वीरसूः॥४४॥ गर्भक्लेशः स्त्रियो मन्ये साफल्यं भजते तदा / यदाऽरिविजयी वा स्यात् संग्रामे वा हतः सुतः // 45 // राजकुमार की माता कहती हैं-राजन् ! मुनियों की रक्षा के निमित्त पुत्र को मरा सुनकर जैसी प्रसन्नता मुझे प्राप्त हुई है वैसी प्रसन्नता न मेरी माता को प्राप्त हो सकी और न मेरी बहन को ही प्राप्त हो सकी, अर्थात् उनका यह सौभाग्य नहीं था कि वे सुन सकतीं कि उनका पुत्र मुनियों की रक्षा करता हुआ मृत्यु को प्राप्त हुअा // 41 / / ___ जो शोकमग्न बन्धु-बान्धवों के समक्ष रोग से पीड़ित एवं दुखी हो लम्बी सांसे खींचते हुये प्राणत्याग करते हैं उनकी माता का सन्तानवती होना व्यर्थ है // 42 // ___जो मनुष्य गौ और ब्राह्मणों की रक्षा में तत्पर हो रणभूमि में निर्भय भाव से युद्ध करते हुये शस्त्रों से आहत होकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं, इस पृथ्वी पर वे ही धन्य हैं / / 43 // है. जो याचकों, मित्रों तथा शत्रुओं से कभी मुख नहीं मोड़ता उसी से पिता वस्तुतः पुत्रवान् होता है और माता वीरजननी कहलाती है // 44 //