________________ में अग्नि और शिव का माहात्म्य वर्णित होता है। सरस्वती एवं पितरों का माहात्म्य तो समग्र पुराणों में वर्णित होता है साविकेषु पुराणेषु माहात्म्यमधिकं हरेः / राजसेषु च माहात्म्यमधिकं ब्रह्मणो विदुः // तद्वदग्नेश्च माहात्म्यं तामसेषु शिवस्य च / समग्रेषु सरस्वत्याः पितृणां च निगद्यते // (ब० पुराण) पुराण 18 क्यों हैं पुराण में मुख्य रूप से पुराणपुरुष-आत्मा का प्रतिपादन किया गया है। आत्मा स्वरूपतः एक होते हुये भी उपाधि, अवस्था वा आयतन-भेद से 18 प्रकार का होता है। इन अठारहों प्रकार का प्रतिपादन करने के कारण पुराणों की संख्या 18 मानी गयी है। आत्मा के 18 प्रकार निम्नांकित रूप से समझने चाहिये। मूलभूत आत्मा-ब्रह्म और उससे प्रादुर्भूत होने वाले देव तथा भूत इन तीन अवस्थाओं के कारण आत्मा के प्रथमतः तीन भेद होते हैं, क्षेत्रज्ञ, अन्तरात्मा तथा भूतात्मा। इन भेदों का उल्लेख मनुस्मृति में इस प्रकार उपलब्ध होता है योऽस्यात्मनः कारयिता तं क्षेत्रज्ञं प्रचक्षते / यः करोति तु कर्माणि. स भूतात्मोच्यते बुधैः // जीवसंज्ञोऽन्तरात्माऽन्यः सहजः सर्वदेहिनाम् / येन वेदयते सर्व सुखं दुःखं च जन्मसु // (मनु० अ० 12) प्रेरक विशुद्ध आत्मा क्षेत्रज्ञ कहा जाता है, कर्मों को करनेवाला आत्मा भूतात्मा कहा जाता है और विभिन्न जन्मों में सुख तथा दुःख का भोग करने वाला आत्मा जीव वा अन्तरात्मा कहा जाता है। क्षेत्रज्ञ आत्मा के चार भेद होते हैं-परात्पर, अव्यय, अक्षर तथा क्षर / परात्पर समस्त विश्व का अधिष्ठान, भूमा एवं विश्वातीत होता है। अव्यय सृष्टि का आधार होता है / अक्षर सृष्टि का निमित्त कारण होता है और क्षर सृष्टि का परिणामी उपादान कारण होता है। तर, अक्षर तथा अव्यय का प्रतिपादन भगवद्गीता में इस प्रकार किया गया है द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च / / क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते //