________________ ( 44 ) उपसंहार इस प्रबन्ध के श्रारंभ में कहा गया है कि पुराणपुरुष परमात्मा का प्रतिपादन करना ही पुराण का लक्ष्य है और प्रतिपाद्य तत्त्व के आधार पर ही इसका नाम पुराण पड़ा है / सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश मन्वन्तर, और वंशानुचरित का वर्णन भी उस पुरुष का निरूपण करने के निमित्त ही किया गया है। लेख के पिछले भाग से यह बात भी पर्याप्त स्पष्ट हो गयी है कि सर्ग, प्रतिसर्ग आदि की व्यवस्था उस पुराण पुरुष के बिना नहीं हो सकती / कारण यह है कि इस जगत् की धारा अविच्छिन्न नहीं है / ऐसा नहीं है कि इस जगत् का क्रम एकान्त रूप से अनादि है, इसका कभी प्रारम्भ नहीं हुआ है और यह सदा इसी प्रकार चलता रहेगा / इसका कभी अवसान नहीं होगा / हम देखते हैं कि हमारे समक्ष ऐसे असंख्य दृश्य पदार्थ हैं जिनका एक दिन कोई पता न था / जिनके अस्तित्व का कोई चिह्न न था। उन्हें श्राज जहां हम देखते हैं कभी वहां कुछ न था / केवल शून्य था / कोई सीमा न थी, कोई परिधि न थी, कोई मूर्ति न थी। कोई अभिव्यक्ति न थी। पर एक दिन वहाँ उन पदार्थों की विशाल मूर्ति खड़ी हो जाती है / उनका उपयोग, उनका व्यवहार होने लगता है / उनके लिए लड़ाई, झगड़े और रक्तगत होने लगते हैं / हम देखते हैं बड़ी बड़ी नदियों, समुद्र के बड़े बड़े भागों को स्थल में परिवर्तित होते, बड़े बड़े जंगलों को ग्राम और नगरों में बदलते, बड़े बड़े नगरों, उपनगरों को उजाड़ जंगल में उतरते, गम्भीर महागों में ऊँचे ऊँचे पहाड़ खड़े होते और बड़े बड़े पहाड़ों को कण-कण में विचर्ण होते / ये घटनायें हमारी आँखें खोल देती हैं / हमें यह स्वीकार करने को बाध्य करती हैं कि प्रत्येक स्थल पदार्थ अभावपूर्वक होता है। प्रत्येक दृश्य वस्तु की व्यक्तावस्था, अव्यक्तावस्थापूर्वक होती है / इसी प्रकार प्रत्येक अभाव भावपूर्वक तथा प्रत्येक अव्यक्तावस्था व्यक्तावस्थापूर्वक होती है। फिर यह अव्यभिचरित नियम इस तथ्य को स्थापित करता है कि कोई ऐसा भी समय अवश्य रहा होगा जब यह जगत सर्वथा अस्तित्वशून्य अथवा सर्वथा अव्यक्त रहा होगा। वही अवस्था प्रतिसर्ग है और जगत की यह दृश्यमान अवस्था सर्ग है। उपर्युक्त वस्तुस्थिति में यह निर्विवाद है कि यदि जगत की उस शन्यावस्था में कोई भावात्मक तत्त्व न माना जायगा तो यह विपुल विश्व कैसे खड़ा हो सकेगा ? केवल शून्य से, असत से, अभाव से इस विचित्र जगच्चित्र का चित्रण कैसे हो सकेगा ? किसी भी चित्र को खींचने, किसी भी मूर्ति को खड़ी करने, किसी भी ठोस वस्तु को बनाने में कुशल शिल्पी और आवश्यक उपकरणों एवं उपादान तत्त्वों का होना अनिवार्य होता है / अतः जगत की उस शून्य अवस्था में, प्रतिसर्ग की दशा में भी जगत के उपादान तत्त्व, कुशल रचयिता तथा अपेक्षित उप