________________ ( 32 ) है धर्मविरुद्ध मार्ग से, अनैतिक ढंग से किसी वस्तु पर अधिकार करना / यह अपने स्वामी शुम्भ-अहंकार की आज्ञा से देवी के निकट जाता है, पर तुहिनाचलस्थिता देवी अर्थात शुभ्र शाश्वत श्रात्म-परायणा बुद्धि एक हुँकार से ही इसे नष्ट कर देती है / ठीक ही है, आत्मोन्मुखी बुद्धि पर लोभ का क्या बल चल सकता है ? लोभ का अभिभव सुन दैत्याधिपति शुम्भ अत्यन्त कुपित हो उठता है और प्रचण्ड पराक्रमशाली काम क्रोध-रूप चण्ड, मुण्ड को आज्ञा देता है कि वे अविलम्ब देवी के पास जाँय और उसका केश पकड़ कठोरतापूर्वक उसे खींच लायें / चण्ड-मुण्ड बड़े अभिमान से देवी के निकट जाते हैं, अनेक प्रकार के श्राघात प्रतिघातों से उन्हें अभिभूत करने का प्रयत्न करते हैं / पर उनका कोई प्रयत्न सफल नहीं होता और अन्त में वे देवी की दमकती तलवार से अर्थात बुद्धिवृत्ति में प्रतिबिम्बित अात्म चैतन्य से काल के कवल बन जाते हैं / चण्ड, मुण्ड के वध का समाचार सुन शुम्भ की क्रोधाग्नि भभक उठती है वह समस्त असात्त्विक विचार-रूप असुरों की महती सेना देवी से युद्ध करने के निमित्त भेजता है / ये सारे असुर देवी को श्रा घेरते हैं। इसे देख सारी बड़ी. देव-शक्तियाँ अर्थात् समस्त श्रेष्ठ सात्त्विक वृत्तियाँ देवी की सहायता के लिये उठ खड़ी होती हैं / उनके प्रखर तेज एवं गम्भीर आघात से आसुरी सेना में भगदड़ मच जाती है / असुरों का यह कातरतापूर्ण पलायन देख महाराक्षस रक्तबीज क्रुद्ध हो उठता है और युद्ध के लिये संग्रामभूमि में स्वयं अवतीर्ण होता है। रक्तबीजवधरक्तबीज एक विचित्र राक्षस है इसे जितना ही मारा जाता है, उतना ही इसका बल बढ़ता है। इस के शरीर से रक्त के जितने बूंद पृथ्वी पर गिरते हैं इसके समान बल-विक्रमशाली उतने ही नये असुर पैदा हो जाते हैं / यह राक्षस रक्तबीज कौन है ? यह है विषयाभिलाष / जिस प्रकार रक्त से शरीर का पोषण होता है उसी प्रकार विषयों से विषयी अभिलाष का भी पोषण होता है। इस प्रकार विषय ही इसके रक्त हैं और चित्तभूमि में विषयोपभोग का होना ही रक्तपात है। अधिकाधिक रक्तपात से अधिकाधिक रक्तबीज के जन्म का अर्थ है अधिकाधिक विषयोपभोग से अधिकाधिक विषयाभिलाष की वृद्धि / इस अद्भुत राक्षस का वध अन्य राक्षसों के वध के समान सुकर नहीं है। इसे प्रत्यक्ष अाघात-द्वारा नहीं मारा जा सकता / इस पर विजय पाने की समस्या