________________ ( 16 ) 5. रैवत ऋतवाक ऋषि बहुत दिन तक अपुत्र थे, अन्त में उन्हें एक पुत्र हुआ जो बड़ा दुःशील निकला। उसके दुश्चेष्टित से बे बहुत दुखी रहने लगे। गर्ग मुनि से उन्होंने उसकी दुःशीलता का कारण पूछा। गर्ग जी ने बताया कि रेवती नक्षत्र के अन्त में पैदा होने के नाते यह इतना दुःशील है। यह सुन ऋषि रेवती नक्षत्र पर कुपित हो गये और शाप दे उसे स्थानच्युत कर दिये / जब ऋषि के शाप से रेवती नक्षत्र कुमुद पर्वत पर गिरा तो उसकी कान्ति से वहाँ पङ्कजिनी नाम का एक सरोवर बन गया / उस सरोवर से एक परम सुन्दरी कन्या प्रकट हुई / वहाँ रहने वाले प्रमुच मुनि ने उसका नाम रेवती रख दिया / रेवती थोड़े दिनों में युवती हो गई। एक दिन मृगया के प्रसङ्ग से प्रियव्रत के वंशज राजा दुर्गम वहाँ श्राये। मुनि ने उनसे उस कन्या का विवाह करने की इच्छा व्यक्त की / कन्या ने कहा कि वह रेवती नक्षत्र में ही अपना विवाह करेगी। उसके अनुरोध को देख मुनि ने अपनी तपस्या के बल रेवती नक्षत्र को पूर्व स्थान में प्रतिष्ठित कर राजा दुर्गम के साथ उसका विवाह कर दिया / मुनि ने विवाह की दक्षिणा मांगने के लिये राजा को संकेत किया। राजा ने कहा मुने! यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो यह वरदान दीजिये कि मेरी इस नवीन पत्नी से ऐसा पुत्र पैदा हो जो मन्वन्तर की स्थापना करे / मुनि से यह वर प्राप्त कर राजा इस नई पत्नी के साथ अपने नगर को चले युक्त तथा मनुष्यमात्र से अजेय था / युवा होने पर समस्त पृथ्वी पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर वही रैवत मनु के नाम से ख्यात हुश्रा। __इस मन्वन्तर में सुमेधा, वैकुण्ठ, भूपति और अमिताभ नाम के चार देवगण हुये। राजा बिन्दु ने सौ यज्ञों का अनुष्ठान कर इन्द्र का पद प्राप्त किया / हिरण्यरोमा, वेदश्री, ऊर्ध्वबाहु, वेदबाहु, सुधामा, पर्जन्य, और वशिष्ठ सप्तर्षि हुये / बलबन्धु, महाबीर, सुयष्टव्य, सत्यक आदि रैवत मनुके पुत्रों के वंश इस मन्वन्तर के राजवंश हुये। उक्त पांच मनुवों में स्वारोचिष को छोड़ अन्य चारों मनु एक ही वंशपरम्परा के हैं। 6. चाक्षुष राजर्षि अनमित्र की पत्नी भद्रा से एक पुत्र पैदा हुअा जो शुचि एवं सुविद्वान् था तथा जन्मान्तर की घटनावों का स्मरण कर सकता था। उसकी माता उसे गोद में बिठा बड़े लाड़ प्यार से खेला रही थी। उसी समय उसे