________________ ( 6 ) ऊर्ध्वस्रोत-देवताओं की उत्पत्ति छठा सर्ग है जिसका नाम देवसर्ग है ; और अक्स्रिोत-मनुष्यों की उत्पत्ति सातवाँ सर्ग है जिसे मानुष सर्ग कहा जाता है। अष्टमोऽनुग्रहः सर्गः सात्त्विकस्तामसश्च सः / पञ्चैते वैकृताः सर्गाः प्राकृतास्तु त्रयः स्मृताः // __ आठवाँ अनुग्रह सर्ग है जिसमें सात्त्विक तथा तामस दोनों का समावेश है। मुख्य से अनुग्रह तक के पाँच सर्ग वैकृत हैं और उनके पूर्व कहे गये तीन सर्ग प्राकृत हैं। प्राकृतो वैकृतश्चैव कौमारो नवमः स्मृतः। इत्येते वै समाख्याता नव सर्गाः प्रजापतेः॥ तीन प्राकृत, पाँच वैकृत तथा नवाँ कौमार ये कुल मिलकर प्रजापति के नव सर्ग हैं। इन समस्त सर्गों की आधारशिला ब्रह्म है, जो अनन्त सत्ता, अखण्ड चैतन्य और एकमात्र अानन्दरूप है। प्रतिसर्ग-प्रलय प्रतिसर्ग अर्थात प्रलय के चार भेद हैं-नित्य, नैमित्तिक, प्राकृत और श्रात्यन्तिक / जो प्रलय प्रतिदिन होता है उसे नित्य प्रलय कहा जाता है जैसे सुषुप्ति / सुषुप्ति के समय सुप्त जीव के समस्त कार्यप्रपञ्च का लय हो जाता है अर्थात जब तक प्राणी सोया रहता है तब तक उसके लिये एक प्रकार के प्रलय की अवस्था रहती है / ब्रह्मा के दिन के समय सर्ग का अस्तित्व रहता है / जब उसकी रात्रि होती है तब भः, भुवः, स्वः इन तीनों लोकों का नाश हो जाता है / इसी नाश 'को नैमित्तिक प्रलय कहा जाता है तस्यान्ते प्रलयः प्रोक्तो ब्रह्मन् ! नैमित्तिको बुधैः / भूर्लोकोऽथ भुवर्लोकः स्वर्लोकश्च विनाशिनः / / (मा० पु० 46 अ०) ब्रह्मा के दिन की समाप्तिरूप निमित्त से होने के कारण इसका नाम नैमित्तिक है / ब्रह्मा के एक दिन की जो अवधि होती है वही उनकी एक रात्रि की अवधि होती है और वही इस प्रलय की भी अवधि है / र एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक का काल मनुष्य का एक अहोरात्र है। पन्द्रह अहोरात्रों का एक पक्ष होता है। दो पक्षों का एक मास होता है / छः