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________________ तथा जल के बीच सर्पशय्या पर शयन करती है, जिसका नाम नारायण है। इस प्रकार परमात्मा की मूर्ति चतुयूहात्मक है। इनमें प्रजा का पालन करने वाली जो सत्त्वप्रधाना मर्ति है वही समाज की सुव्यवस्था के हेतु धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने के निमित्त समय-समय पर मनुष्य-शरीर में अवतीर्ण होती है / तात्पर्य यह है कि परमात्मा परमार्थ दृष्टि से स्वभावत: निर्गुण होते हुये भी अनादि काल से गुणों से सम्पन्न हैं। इस गुण-सम्पर्क के कारण ही उनका अवतार लेना सम्भव होता है। यह बात इस पुराण के चौथे अध्याय में बड़ी स्पष्टता से वर्णित है / दूसरे प्रश्न का उत्तर___ जब इन्द्र ने प्रजापति त्वष्टा के ब्राह्मण पुत्र को मार डाला तब उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा। इससे उनका धर्मतेज उनसे निकल कर धर्मराज में जा मिला। पुत्र का वध सुन कुपित त्वष्टा ने अपनी एक जटा उखाड़ उसे अग्नि में हवन कर दिया / उससे महान् सुरद्रोही वृत्र का जन्म हुअा। उसके उपद्रवों के निरोधार्थ सप्तर्षियों ने उसकी और इन्द्र की सन्धि करा दी। कुछ दिन बाद अवसर पा इन्द्र ने उस सन्धि को तोड़ वृत्र को मार डाला। इस दूसरी ब्रह्महत्या के पाप से उनका बल उनसे निकल कर पवन में जा मिला। फिर जब उन्होंने गौतम ऋषि की पत्नी सुन्दरी अहल्या का सतीत्व नष्ट किया तब उनका रूप-सौन्दर्य उनसे निकल अश्विनीकुमारों में जा मिला / बाद में राजाओं की असुर वृत्ति से पीड़ित पृथ्वी में शान्ति-स्थापन के निमित्त जब भगवान् के अवतार लेने की आवश्यकता हुई तब उसके अनुरूप भूमिका तयार करने के लिये देवगण पृथ्वी पर जन्म लेने लगे। उस समय पाण्डु की प्रथम पत्नी कुन्ती ने धर्मराज से इन्द्र के धर्म को प्राप्त कर उससे युधिष्ठिर को, इन्द्र के वीर भाव से अर्जुन को, पवन से इन्द्र के बल को प्राप्त कर उससे भीम को तथा पाण्डु की द्वितीय पत्नी माद्री ने अश्विनीकुमारों से इन्द्र का रूप-सौन्दर्य प्राप्त कर उससे नकुल और सहदेव को जन्म दिया। इस प्रकार पाँच शरीरों में एक इन्द्र का ही जन्म हुअा। उन्हीं दिनों महाराज द्रुपद के घर अग्नि से इन्द्र की पत्नी शची का जन्म हुआ। समय आने पर अर्जुन के शरीर में उत्पन्न इन्द्र के मत्स्यवेध से प्रभावित हो द्रुपद ने अपनी पुत्री द्रौपदी अर्जुन को अर्पित कर दी और वह माता कुन्ती की आज्ञा से उनके पाँचों पुत्रों की पत्नी बनी। इस अाख्यान से स्पष्ट है कि द्रौपदी पाँच पुरुषों की पत्नी नहीं किन्तु पाँच शरीरों में अवस्थित एक ही पुरुष इन्द्र की पत्नी थी। तीसरे प्रश्न का उत्तर जब बलदेव जी ने देखा कि उनके प्रिय अनुज श्रीकृष्ण ने अर्जुन का पक्ष
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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