________________ ( 115 ) शिवा ने उत्तर दिया-"मैंने यह प्रतिज्ञा कर रखी है कि जो युद्ध में मुझे जीतेगा वही मेरा भर्ता हो सकेगा"। सुग्रीव अपने स्वामी का बल-प्रताप सुना कर ' देवी का उत्तर ले लौट गया। छियासीवाँ अध्याय शुम्भ देवी का उत्तर सुन कुपित हो उठा और उन्हें बलपूर्वक पकड़ लाने के के लिये धूम्रलोचन को आज्ञा दी। धूम्रलोचन एक बड़ी सेना ले देवी के पास गया पर वहाँ देवी द्वारा मार डाला गया | इस समाचार से ऋद्ध हो शुम्भ ने चण्ड-मुण्ड को बहुत बड़ी सेना के साथ भेजा और देवी के वाहन सिंह को मार कर देवी को बाँध लाने का आदेश दिया / सतासीवाँ अध्याय जब चण्ड, मुण्ड के नेतृत्व में असुरों की सेना देवी के निकट पहुँच युद्धोद्यम करने लगी तो देवी को क्रोध आ गया / क्रोध आते ही उनके ललाट से खड्गहस्ता काली प्रकट हुई और असुर सेना से उनका विकट युद्ध हुआ / अन्त में सारी सेना का संहार कर काली ने शिवा को चण्ड-मुण्ड का शव अर्पित करते हुये कहा कि युद्ध-यज्ञ में मैंने इन पशुओं की बलि आप को दी, अब शुम्भ और निशुम्भ को श्राप का वध स्वयं करना होगा | शिवा ने चण्ड-मुण्ड का वध करने के कारण काली को चामुण्डा नाम से विख्यात किया / अठासीवाँ अध्याय चण्ड-मुण्ड का वध हो जाने के बाद कम्बु, धौम्र, कालक, दौहद, मौर्य, और कालकेय असुरों की सुविशाल सेनाएँ युद्ध के निमित्त उपस्थित हुई / इस युद्ध में ब्रह्माणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही और ऐन्द्री शक्तियों ने भी शिवा का सहयोग किया / इन शक्तियों और शिवा के अस्त्र-प्रहार से जब इन सारी असुर सेनाओं का नाश हो गया तब रक्तबीज नाम का विचित्र असुर युद्ध के लिए उपस्थित हुा / उसके शरीर से रक्त के जितने बूंद पृथ्वी पर गिरते थे उतने ही उसी जैसे बलशाली असुर पैदा हो युद्ध करने लगते थे / अतः उसका वध असम्भव प्रतीत हो रहा था / लड़ते लड़ते शिवा को एक युक्ति सूझी और उन्होंने काली से कहा-“जब मैं रक्तबीज पर अस्त्र-प्रहार करूँ तब तुम उसके शरीर से निकलनेवाली रक्तधारा को पी जाअो। एक बूंद भी पृथ्वी