________________ ( 112 ) DIR पुत्र सावर्णिक नाम से ख्यात हुआ जिसे वैवस्वत मनु के बाद मनु का पद प्राप्त होगा। दूसरे पुत्र शनैश्वर ने ग्रहों के मध्य में स्थान प्राप्त किया और तीसरी, सन्तान कुरुदेश के राजा संवरण की पत्नी हुई / उनासीवाँ अध्याय इस अध्याय में वैवस्वत मन्वन्तर के देवता, इन्द्र, ऋषि, और प्रमुख नृपतियों का वर्णन किया गया है और वैवस्वत मनु के चरित्र के अध्ययन को पापनाशक एवं पुण्यकारक बताया गया है / असीवाँ अध्याय इसमें सावर्णि मनु के काल के देवता, इन्द्र, ऋषि और प्रमुख नृपों का वर्णन किया गया है। एकासीवाँ अध्याय इस अध्याय से दुर्गासप्तशती का प्रारम्भ हुअा है। इस अध्याय में अङ्कित कथानक इस प्रकार है। स्वारोचिष मन्वन्तर में सुरथ नाम का एक चक्रवर्ती राजा था / एकबार कोलाविध्वंसी लोगों से उसका बड़ा युद्ध हुअा और वह उसमें पराजित हो गया। अब वह समस्त भूमण्डल का राजा न रहकर केवल अपने नगर मात्र का राजा रह गया। उसके बलवान् शत्रुओं ने वहाँ भी उस पर आक्रमण किया जिससे वह और भी दुर्बल हो गया। फिर उसके मन्त्रियों ने उसके कोष और सेना पर अधिकार कर लिया और उसे राज्य से निकाल दिया। तब वह जंगल में जा मेधा ऋषि के आश्रम में दुःख और चिन्ता का जीवन बिताने लगा / एक दिन उसी श्राश्रम में समाधि नामक एक वैश्य से उसकी भेंट हुई। दोनों में पारस्परिक परिचय का आदान-प्रदान हुआ / वैश्य भी राजा के समान ही दुःखी था क्योंकि उसके कुटुम्बियों ने उसकी बड़ी सम्पत्ति का यथेच्छ उपभोग करने की इच्छा से उसे घर से निकाल दिया था | दोनों अपनी पुरानी सम्पत्ति और स्वजनों की चिन्ता करते रहते थे। वे यह नहीं समझ पाते थे कि जिन लोगों ने निर्ममता और निष्ठुरता से उन्हें अपमानपूर्वक पृथक कर दिया है उनके प्रति भी उनके मन में ममता और स्नेह क्यों है ? अतः वे अपने इस मोह का कारण जानने तथा उससे छुटकारा पाने के निमित्त आश्रम के अध्यक्ष मेधा ऋषि के निकट गये / ऋषि ने महामाया को उनके मोह का कारण बताते हुये महामाया के आविर्भाव की कथा सुनायी। उन्होंने कहा कि एकबार