________________ को अलर्क के ऊपर आक्रमण करने की प्रार्थना नहीं की थी किन्तु ग्राम्य भोगों में अासक्त हो जीवन के मुख्य लक्ष्य मोक्षप्राप्ति से विमुख हुए अपने अनुज अलर्क का उद्धार करने के लिये | अलर्क के अासक्तित्याग से मेरा वह लक्ष्य पूर्ण हो गया। निश्चय ही यह कार्य श्राप की सहायता से सम्पन्न हुअा है क्योंकि यदि श्राप अाक्रमण कर उसे संकट में न डालते तो उसके मन में वैराग्य की भावना का उदय न होता / यह कह कर काशिराज की प्रार्थना पर सुबाहु ने उन्हें आत्मज्ञान और प्रासक्तित्याग का उपदेश देकर अपने स्थान के लिये प्रस्थान किया / तत्पश्चात् काशिराज ने अलर्क के प्रति श्रादर प्रकट कर अपने नगर के लिये प्रस्थान किया और अलर्क ने अपनी राजधानी में जा अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्यासन पर अभिषिक्त कर योगाभ्यास के लिये वन की शरण ली। इस अध्याय के निम्नाङ्कित दो श्लोक स्मरण रखने योग्य हैं / उपेक्ष्यते सीदमानः स्वजनो बान्धवःसुहृत् / यैनरेन्द्र ! न तान् मन्ये सेन्द्रियान् विकला हि ते // 1 // सुहृदि स्वजने बन्धौ समर्थे योऽवसीदति / धर्मार्थकाममोक्षेभ्यो वाच्यास्ते तत्र नत्वसौ // 16 // राजन् ! जो लोग अपने दुखी स्वजन, बान्धव और मित्र की उपेक्षा करते हैं, मेरी समझ से वे इन्द्रिय-युक्त नहीं हैं, निश्चय ही वे इन्द्रियविकल हैं // 15 // सामर्थ्यवान् मित्र, स्वजन तथा बन्धु के रहते यदि कोई धर्म, अर्थ काम और मोक्ष से च्युत होता है तो इसके लिये वह निन्दनीय नहीं है अपितु वे सामर्थ्यशाली मित्र आदि निन्दनीय हैं जिनके रहते उसकी दुर्गति होती है।।१६॥ पैंतालीसवाँ अध्याय इस अध्याय में पक्षियों ने जैमिनि को उस संवाद का सुनाना प्रारम्भ किया है जो जगत् के उद्भव और प्रलय के सम्बन्ध में मार्कण्डेय और क्रौष्टुकि के बीच हुआ था। उस संवाद में कहा गया है कि पूर्वकाल में अव्यक्तजन्मा ब्रह्मा के प्रकट होते ही उनके मुखों से क्रमशः पुराण और वेद प्रकट हुए। ब्रह्माके मानसपुत्र सप्तर्षियों ने वेदों को तथा भृगु अादि मुनियों ने पुराणों को ग्रहण किया / भृगु से च्यवन ने, च्यवन से ब्रह्मर्षियों ने, ब्रह्मर्षियों से दक्ष ने और दक्ष से मार्कण्डेय ने इसे प्राप्त किया / फिर मार्कण्डेय ने उस पुराण के अनुसार क्रौष्टुकि को बताया कि