________________ हे तात ! तू तो शुद्ध प्रात्मा है, तेरा कोई नाम नहीं है, यह कल्पित नाम तो तुझे अभी मिला है। यह शरीर भी पांच भूतों का बना है, न यह तेरा है और न तू इसका है। फिर तू क्यों रोता है ? ||11 // अथवा तू रोता नहीं, यह शब्द तो तेरे निकट पहुँचकर अपने पार ही प्रकट होता है। तेरी सम्पूर्ण इन्द्रियों में जो भाँति-भांति के गुण-अवगुण कल्लित होते हैं वे भी भूतों के ही विकार हैं // 12 // जिस प्रकार इस जगत् में अत्यन्त दुर्बल भूत अन्य भूतों के सहयोग से वृद्धि को प्राप्त होते हैं, उसी प्रकार अन्न और जल श्रादि भौतिक पदार्थों के देने से पुरुष के पाञ्च भौतिक शरीर की ही पुष्टि होती है / इससे तुझ शुद्ध प्रात्मा की न वृद्धि ही होती है और न हानि ही होती है // 13 // तू अपने उस चोले तथा इस देह रूपी चोले के जीर्ण-शीर्ण होने पर मोह न करना / शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार यह देह प्राप्त हुआ है / तुझे तो मद आदि मानस मलों ने इससे बाँध रखा है // 14 // किसी को पिता, किसी को पुत्र, किसी को माता तथा किसी को प्रिया के रूप में व्यवहृत किया जाता है। इसी प्रकार किसी में 'यह मेरा है' ऐसा कहकर अपनेपन का तथा किसी में 'यह मेरा नहीं है। ऐसा कहकर परायेपन का व्यवहार किया जाता है। इन सब व्यवहारों के समस्त बालम्बनों को तू भूतों का समुदायमात्र समझ ||15|| यद्यपि संसार के सारे भोग दुःव रूप हैं तथापि मूढचित्त मानव उन्हें दुःख का नाशक तथा सुख का जनक समझता हैकिन्तु जो विद्वान् हैं जिनका चित्त मोह से आच्छन्न नहीं है। वे उन भोग-सुखों को भी दुःख ही मानते हैं // 16 // हँसी क्या है ? दाँत की हडडियों का केवल प्रदर्शन ही तो है। नेत्र युगल, जो अत्यन्त सुन्दर समझे जाते हैं, क्या हैं ? केवल मजा की कलुषता ही तो है / इसी प्रकार स्थल कुच, जघन तथा नितम्ब क्या है ? घने मांस की गाँट ही तो हैं / इसी लिये, युवती स्त्री, जो पुरुष की रति का आलम्बन समझी जाती है, क्या वह नरक की जीतीजागती मूर्ति नहीं है ? ||17|| पृथ्वी पर वाहन चलता है, वाहन पर यह शरीर रहता है और इस शरीर में भी एक दूसरा पुरुष बैठा रहता है, इसलिये पृथ्वी, वाहन और शरीर तीनों ही पुरुष के समान अालम्बन हैं, फिर भी उसे * शरीर में जितनी अधिक ममता होती है उतनी पृथ्वी और वाइन में नहीं होती, यही उसकी मूर्खता है // 18|| छब्बीसवाँ अध्याय अपने स्तन्य की धार के साथ अध्यात्म का जो संस्कार मदालसा ने बालक में डाला उसका फल यह हुआ कि वह संसार से निर्मम हो गया तथा राज्यकार्य 6 मा० पु.