________________ ( 87 ) करवाई है' मुद्रित करवा कर दावा किया कि चोरड़िया खरतरगच्छ के हैं ? चोरडिया जाति इतनी विशाल संख्या में एवं विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी कि जहाँ जिस गच्छ के आचार्यों का अधिक परिचय था उन्हों के द्वारा अपने बनाये मन्दिर की प्रतिष्टा करवा लेते थे केवल खरतर ही क्यों पर चौरड़ियों के बनाये मन्दिरों की प्रतिष्ठा अन्य भी कई गच्छो वालों ने करवाई है तो क्या वे सब गच्छ वाले यह कह सकेगा कि हमारे गच्छ के आचार्यों ने प्रतिष्टा करवाई वह जाति ही हमारे गच्छ की हो चुकी ? नहीं कदापि नहीं / 'हम चोरड़िया खरतर नहीं है' नामक ट्रक्ट में चोरडिया जाति के जो चार शिलालेख दिये हैं वे प्रतिष्टा के लिये नहीं पर उन शिलालेखों में चोरड़ियों का मूल गौत्र आदित्यनाग लिखा है मेरा खास अभिप्राय खरतरों को भान करने का था कि चोरड़ियों का मूल गौत्र आदित्यनाग हैं न की राजपूतों से जैन होते ही चोरड़िया कहलाये जैसे खरतरों ने लिखा है। जैसे चोरड़ियों को अजैनों से जैन बनते ही चोरडिया जाति का रूप दिया है वैसे गुलेच्छा पारख वगैरह को भी दे दिया है परन्तु इन जातियां के नाम संस्करण एक समय में नहीं किन्तु पृथक 2 समय में हुए हैं इन सबका मूल गौत्र आदित्यनाग है अतएव खरतरों की गत्पों पर कोई भी विश्वास न करे। 16 संचेती-यह सुंचिंति गौत्र की शाखा है इनके प्रतिबोधक वीरात 70 वर्ष आचार्य रत्नप्रभसूरि हुए हैं। ख. य० रा० म० मु० 10 14 पर लिखते हैं कि वि० सं० 1026