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________________ ( 85 ) कसौटी-जिनदत्तसूरि का देहान्त वि० सं० 1211 में हुआ उस समय पूर्व की यह घटना होगा / तब पुष्कर का तलाब वि० सं० 1212 में प्रतिहार नाहाडराव ने खुदाया बाद कई अर्सा से गोहों पैदा हुई होगी इस दशा में जिनदत्त सुरि के शिष्य ने स्त्री पुरुष को गोहों से कैसे बचाया होगा यह भी एक गप्प ही है। ___१४-कोचर यह डिड् गौत्र की शाखा है और विक्रम की सोलहवी शताब्दी में मंडीर के डिडू गोत्रीय मेहपालजी का पुत्र कौचर था उसने राव सूजाही की अध्यक्षता में रह कर फलौदी शहर को श्राबाद किया कोचर जी की सन्तान कोचर कहलाई इसके मूल गौत्र डिडू है और इनके प्रतिवोधक वीरान 70 वर्षे आचार्य रत्नप्रभ सूरि ही थे। "ख० य. रा. म. मु० पृ० 83 पर इधर उधर की असम्बंधित पाते लिख कर कौचरों को पहले उपकेशगच्छीय फिर तपा गच्छीय और बाद खरतरे लिख है इतना ही नहीं बल्कि कई ऐसी अघटित बाते लिख कर इतिहास का खून भी कर डाला है।" . कसौटी-इस जाति के लिये देखो "जैन जाति निर्णय" नामक पुस्तक वहाँ बिस्तार से उल्लेख किया है / और कोचरों का उपकेश-गच्छ है / १५-चोरडिया यह अदित्यनाग गौत्र की शाखा हैं अदित्यनाग गौत्र आचार्य रत्नप्रभ सूरि स्थापित महाजन वंश को अठारह शाखा में एक है। ख० य० रा० म० मु० पृष्ट 23 पर लिखा है कि पूर्व देश में अंदेरी नगरी में राठोड़ राजा खरहत्य राज करता था उस समय यवन लोग कावली मुल्क लुट रहे थे राजा खरहत्थ अपने चार पुत्रों को लेकर वहाँ गया यवनों को भगा कर वापिस आया पर उनके चार पुत्र मुञ्छित हो गये जिनदत्तसरि ने उन पुत्रों को अच्छा कर जैन बनाये ! इत्यादि
SR No.032743
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 12 Jain Jatiyo ke Gacchho ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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