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________________ ( 54 ) (2) बाफना जाति को भी खरतरों ने दादाजी प्रतिबोधित स्वतंत्र गोत्र लिख दिया है, पर वह स्वतंत्र गोत्र नहीं है / देखिये शिला लेखों में इस जाति का मूल गोत्र बप्पनाग लिखा हुआ मिलता है। ___ "सं० 1386 वर्षे ज्येष्ठ व० 5 सोमे श्री उएशगच्छे बप्पनाग गोत्रे गोल्हा भार्या गुणादे पुख मोखटेन मातृपित्रोः श्रेयसे सुमतिनाथ विवं कारितं प्र० श्री ककुदाचार्य सं० श्री ककसूरिभिः” ____बाबू० पू० सं० शि० नीसरा खड पृष्ट 65 लेखांक 2253 / "सं० 1485 बर्षे वैशाख मुद 3 बुधे उपकेश ज्ञातौ बप्पनाग गोत्रे सा० कुड़ा पु० सा० सा साजणेन पित्रोः श्रेयसे श्री चन्द्रप्रभ बिम्बं कारितं प्र० श्री उपकेशगच्छे ककुदाचार्य सं० श्री सिद्ध सूरिभिः" बाबू पूर्ण सं० शि० तीसरा पृष्ठ 91 लेखांक 2391 / इन दो शिला लेखों में बाफना जाति का मूल गोत्र बप्पनाग लिखा है तब आगे चलकर देखिये___"सं० 1521 वर्षे वैशास्त्र सुद 10 श्री उपकेश ज्ञातीय बापणा गोत्रे सा० देहड़ पुत्र देल्हा भा० धाई पुत्र सा० भीमा, कान्हा सा० भीमाकेन भा० वीराणी पुत्र श्रवणा माडु जाजु साहितेन श्रीं शान्तिनाथ मूलनायक प्रभृति चतुर्विंशति जिनपह
SR No.032743
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 12 Jain Jatiyo ke Gacchho ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1938
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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