________________ ( 36 ) हैं। इन्होंने तो इधर उधर से लेकर अर्थात् "कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा" के माफिक अपनी एक हवाई दीवार खड़ी कर दी है / क्योंकि खरतर नाम संस्करण बिक्रम की बारहवीं शताब्दी में आचार्य जिनदत्त सूरि की खरतर प्रकृित के कारण हुआ है, और उस समय उनको इतना समय भा नहीं मिलता था कि वे किन्हीं अजैनों को प्रतिबोध देकर जैन बनाते। कारण जिनदत्त सूरि उस समय बड़ी ही आफत में थे। एक ओर तो आपके गुरु भाई जिनशेखर सरि आप से खिलाफ़ होकर प्राचार्य पदवी के लिए लड़ रहे थे। पर जिनदत्तसूरि भी इतने उदार कहां थे कि आप सोमचन्द्र साधु ही बने रहते और जिन शेखरसूरि को ही आचार्य होने देते ? आखिर वे दोनों लड़ झगड़ के आचार्य बन गए / यही कारण है कि आगे चल कर जिनदत्त सूरि के समूह का नाम खरतर और जिनशेखरसूरि के शिष्यों का नाम रुद्रपाली पड़ गया। दूसरी ओर जिनवल्लभ सूरि ने जो महावीर के 5 कल्याणक के स्थान छ कल्याणक को प्ररूपणा की थी और चैत्यवासियों ने उन्हें निह्नव-उत्सूत्रवादी घोषित कर दिया था, पर जिनवल्लभसरि आचार्य होने के बाद केबल स्वल्पकाल ही जीवत रहे / बह: आफ़त भी जिनदत्तमूरि के शिर पर ही रही / तीसरा जिनदत्त सूरि खुद पाटण में स्त्री पूजा का विरोध कर चुके थे कि स्त्रियें जिन पूजा न कर सकें / यही कारण है कि उनको सिन्ध में जाकर निर्दयी पीरों को साधना पड़ा। इस प्रकार जिनदत्तसूरि तो केवल अपना पीछा छुड़ाने के लिये इधर उधर भ्रमण कर रहे थे, वे कब नये जैन बनाने बैठे