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________________ श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो. ७६ जुनुं एक उद्यान । तिणमांहे कूनो जागो डे बहु मान ॥ ते रे कूया पासें एक अनेरो मोटो मालीक उन । लता गुआम गुळ करी वीटयो को न दीसे उन । सारथवाह धनावो नामे बहुधन पूजां पाने । जमा नामें तसु वरघरणी चेमो पंथग नामे ॥१॥ तिणे नयरे कुकर्मी पाप चंमाल सरुप । विजय नामे तस्कर ताके परधनरुप । जना सारथवाही चिंते धन्य ते माय । निज कूखे ऊपना बाल रमामे गाय ।। तो ते गावे गीत अने हुलरावे वली वली ध धवामे। हुं कां सरजी देव अधन्ना चिंतवि बातम तामे । एम विमासी देव आराधन बाहरि बहुपरि मंझे। पुत्र सुकोमल तो ते प्रसवे विघन विलास विहमे ॥५॥ नामे देवदिम उमाय आजरण पहिरावे । लेई चहुटे चांचर पंथगता सरमावे । एक पासें मूंकीयो बालक पंथग बोरें। सर्व जूषण जूषित बालक दीगे चोरें। तउरे चोर विजयते बालक लेइ सर्वाचरण ऊतारे । जई उद्यान गहरमांहि पेसी बालकने ते मारे। जग्न
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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