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________________ ६६ श्री उत्तराध्ययनसुनो सज्झायो. १२ ॥ प्रशस्त लेश्या तजोरे । चित्त धरो शुभ ध्यान ॥ करजोमी श्रीब्रह्म कहेरे । जिम पामो शुभ ज्ञान ॥ || जगत० १३ ॥ इति लेश्याध्ययन सज्झायम् ।। ३४ ।। श्री अणगार सज्जाय ३५. [ इति कोड आणि कामिनी जोव इति प्रीयडा वाट - ए देशी ] पंच व्रत मन शुद्ध आदर | बंकि सवि गृहवास ॥ वसति जोए सूकती । तेह निवसे रे मन जाव उदास ॥ १ ॥ के वंदो रे गुरु गिरुया । जिए दीवे रे हुवे परम आणंद के ॥ तन मन विकसे नामें । जिम जल निधिरे देखी शुज चंद के (कणी ) ॥ नारि तृण मणि दृषद कंचण । गिणे समता जाय ॥ लोलपण रसनो तजे । मन शुद्धे रे पाले बह काय के ॥ वंदो ॥ २ ॥ दसे दिश जिम शस्त्रधारें । अगनि जंतु हणाय ॥ तासु हिंसा टालवा । निज हाथे रे जोजन न पचाय के ॥ वंदो० ॥ ३ ॥ नमण बंदण रयण पूजा । रिद्धिनें सतकार || एह नवि वंठे मनें । ते पामे रे केवल गुण
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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