SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. ब्ह कारण आहार व्ये । ा संयम सार ॥ वेयण वैयावच्च दया। चिंता धर्म विचार ॥ २२ ॥ उपसर्ग दया तप रोगें । वलि शील धरेवा योगें ॥ अणसण एणे बह काजें। जोजन टाब्युं जिनराजे ॥३॥ चोथी पोरसि जाजन बंधे । सज्जाय तणी पर संधे। जयणाएं पूंजी वसति । पमिलेहे उपधि सहु जति ॥ २४ ॥ पेखी सत्तावीस मिल ।करी चरम पचखाण ॥ शुश् थव इणि बिहु पर करी । वंदे चैत्य सुजाण ॥ २५ ॥ तदनंतर करे पमिकमणुं । सवि पाप करम निरदलणुं ॥ तसु विधि आवश्यक माहे ॥ विस्तर जो उदाहे ॥२६॥श्म समाचारी जाणी। तमे तहति करो जिन वाली । एक मना थश् आराधो। श्रीब्रह्म कहे शिव सुख साधो ॥२७॥ इति समाचारी सज्झायम् ॥ २६ ॥ श्रीखनुकीय सज्जाय २७. (रे जीवडादुलह मानव भव लाधो-ए देशीमां) बुद्धि तणो निधि गरग महाऋषि । गह क्रिया
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy