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________________ श्री उत्तराध्ययनमूत्रनी सज्झायो. पाले संयम निरमल ध्यान । अदजुत पामे केवलज्ञान ॥ एहवा० ॥ २० ॥ मृगापुत्र सुख मुगतें पावे । वलि वलि श्रीब्रह्म तसु गुण गावे ॥ एहवा ॥ ॥१॥ इति मृगापुत्र सज्जाय ॥१५॥ श्रीमहानिग्रंथीय सज्जाय . __ (सेजे वसे पारेवडो-ए देशीमां.) सिक साधु नमसुं मन नावे। कहिसुंधर्म विचार प्राणीजी॥ मगध देशनो राजियो। श्रेणिकराय साधार प्राणीजी ॥१॥ गुण गावं श्री साधुना । हियो आणंद पूर प्राणीजी ॥ चोखे चित सेवा करूं। पाप पला पूर प्राणीजी (ए आंकणी)॥२॥ राय रयवामी एक दिन जाय । वनमांहे दीठो साधु ॥ प्रा॥ रुपवंत समता गुण पूरो। संतोषं निरावाध ॥ प्राण गुण ॥३॥ वंदे दे प्रदक्षिणा। पूजे वे कर जोमी ॥प्रा०॥ तरुणपणे चारित्र लियुं । एतो मोटी खोम ॥ प्राण्गुण ॥४॥ चोथे याश्रम तप आचरीये। तें उतावल कीध ॥ प्राण ॥ मुणिवर कहे मुज नाथ न कोऽ । तिणमें
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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