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श्री उत्तराध्ययनमूत्रनी सज्झायो. ॥ ५ ॥ तन धन यौवन दीसे आल ए । सजन सनेहा सवि जंजाल ए॥-जंजाल माया तणो मंदिर एह दोसे जग सहू । एहवं जाण। यति थास्युं तात सूं कहिए बहू ॥ अनुमति आपो श्सू कहेतां विप्र वैरागे चमयो। जिनधर्म पाखें जीव बहु पर नवनवे नव रमवमयो ॥ ६ ॥ एहदूं कहेतां नारी ब्रूझवी। ममता माया टाली सूऊवी ॥-रीजवी चारित्र लीये ततखिण राय गरथ अणावए। ते विप्र केरो णे अवसर नारि तसु समजावए ॥-श्वान वंडे वम्यु लेवा तेह सरिखो तुं सही । तिम तेह धननो अरथ तुजने एम करतां जस नही ॥ ७॥ नरपति संजलि चारित्र आदरे । कमला राणी जावें व्रत धरे ॥-त्रत धरे बह जण टालि परिग्रह मयण बलते निरदले । जले नावे केवलज्ञान पामी, मुगति नगरी जर मिले। कीजे अविहम साथ एहवो ॥ धरम प्रीति धरीजी ए॥ कहे श्रीब्रह्म एहेवा साधु वांदी, जनमना फल लीजी ए ॥७॥
इति इखुकारी स्वाध्यायम् ॥ १४ ॥