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श्री उत्तराध्ययनमुत्रनी सज्झायो.
खीर ॥ जाति सुंदर तुरिय जेहो । चमियो च कियो सोहे वीरके ॥ सुगुरु ॥१३॥ धेनु माहें परिवयों रे । वृषज सोहे जेम ॥ कलन कुलसुं कश्विरुरे । मृगमाहे मृगमाहे मृगपति जेमके ॥ सुगुरु० ॥ १४ ॥ चंद चक्री जेम माधव, जिसि सीता गंग ॥ सयंजुरमण समुद्र सुरगिरि | जंबू जंबू रुख सुचंगके ॥ सुगुरु० ||१५|| धानना कोठारनी परे । जय सार विचार | इसा सुगुरु तुम सदा सेवो । जिमलहो जिमल हो जव दुख पारके ॥ सुगुरु० ॥ १६ ॥ क्रिया सफली थाए जेणें । होये जगमांहे मान || श्रीब्रह्म इम कहे सदा सीखो, । तेहज तेहज साधुं ज्ञानके ॥ सुगुरु ॥ १७ ॥
इति बहुश्रुतपूजा सज्झायम् ॥ ११ ॥ श्रीहरिकेशी सज्जाय १२ मथुरापुर पति शंख नरेसर | चारित्र ल्ये मन भाई ॥ विचरत विचरत एकदा रे । पुर हथियार जाई || १ || सणा परहरिये अहंकार । हरिकेशीवल मुनितणो रे । जेवो जाति प्रकार ( क ) ॥ सोमदेव कहे वाटी रे । चाल्यो मुणिवर जाम ॥ वाट थ