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श्री आगम सद्दहणा छत्रीसी. २२७ व्रत ॥ ५ ॥ आ ॥ कुमर सुबाहु आदर्या । पोसह त्रण विचार ॥ तो किहां चिहुं पर्व बांधणी । एम वली नंद मणियार ॥ ६॥ श्रा० ॥ बीजे अंगे जाषिया। पोसहसुं उपवास ॥ चिहुं पर्व अधिक सत्तम अंगें। जगवर अंगें प्रकास ॥७॥ आ॥ ॥रियावही विणु पमिकम्या। सामाश्क उच्चार ॥ न करे एम जाणो सही। पंचम अंग विचार ॥ ॥ ॥ रजोहरणने मुहपत्ती । आवश्यक अधिकार ॥ साधु श्रावकनें दाखव्या। श्री अनुयोग जुवार ॥ ए ॥ आ॥ ॥ कुंभ कोलिय श्रावक वली । मूंकी उत्तरासंग ॥ तव तिण करवा मंमियो। आवश्यक मनरंग ॥१०॥आ॥ रजोहरण दस मुहपत्ती। पमिगाहे श्री साधु ॥ दसम अने पंचम अंगें । श्रावकने घर लाध ॥ ११ ॥ आण ॥ एह वचन तेणे नवि लह्यो । वलोय दसासुय खंध ॥ ए उपगरण प्रगट कह्या । श्रावकने संबंध ॥१२॥
आ ॥ पमिकमणो गणधर कह्यो । न कहे श्रावकनें जेय ॥ अतीचार कमतल कहे । बहुल संसारी तेय