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________________ श्री सोल सतियोनी सज्झायो. प्रकासरे ॥ १ ॥ जसु गुण गाइये । अति रलियामणा रासो ॥ सकल सुहामणी जासोरे । अति उलट धरी | नयण ऊरंतमे नीररे ॥ जसु० ॥ कणी० ॥ कइ कोइ राजकुमर नवो । कइ विद्याधर वीर ॥ कइ सुर कइ किन्नर वली । कइ कोइ नूचर धीरोरे ॥ जसु० ॥ २ ॥ कइ हरि क ब्रह्मा वली । कई ईसर कई इंद ॥ क रविकर क‍ नागसुर । कइ चक्री बे चंदोरे ॥३॥ ज० ॥ सिर धूणी कोशाजणे । वलतो वयण विलास ॥ ते नर किसुं बखाणिये । जे नर नारीना दासोरे ॥ ४ ॥ जसु० ॥ ते किम गाइये | नयण बाण में वींधीयारे ॥ राजकुमरनी कोमि । विद्याधर में मोहीयारे | पाय पके करजो मिरे ॥ ५ ॥ ते० ॥ ते किम गाइये। सुर सेवा माहरी करे रे || किन्नर केहामादि । नूचर जला जमामीया । फूंके फाटीय ते जाइरे ॥ ६ ॥ ते ॥ हरिवंसली वजावतोरे । माने माहरी आए | ब्रह्मा चिंहुं वयणे करी । करे अम्हारकां वखाणोरे ॥ ७ ॥ ० ॥ ईसर हे नचावियो । इंद्र मनाव्यो 1 । २०७
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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