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________________ श्री सोल सतीयोनो सज्झायो. ततकाल ॥१५॥ प्र० ॥ दोवर जे सावइ नही । चैत्यवंदन किम जाण्यो नेय ॥ शक्रस्तव तो कां कहे? । पूजे नितु कांश जिणवर देव ? ॥१३॥ प्र० ॥रायपसेणी बोलियो । सतर भेद पूजा विधान ॥ सूरियाज देवता करे । जेहनी प्रसंसा करे वर्षमान ॥ ॥ १४ ॥ प्र० ॥ जीवानिगम तीजो । विजयदेवतणे दिहंत ॥ जंबुदीपे पांचमे । प्रतिमास्थान कही निव्रत ॥ १५ ॥ प्र० जगवति अंगे प्ररुपियो। नंदीसर चे विख्यात ॥ जंघाचारण संजती । विद्याचारण वंदे नली नात॥१६॥प्र०॥सातमो उवासगदसा । प्रतिमा बोली त्रिजुवन नाथ ॥ आणंद श्रावक श्रादरी। आराधी दीधो सिव हाथ ॥१७॥ प्र० श्रीमुख जिणवर कह्यो । पालिज्यो दस विनय विचार ॥ ते आराधक बोलियो। पन्हावागरण अंग मकार ॥१॥ अष्टापदनी थापना । उत्तराध्ययन मकार ॥ सेतुंज नेमिगिरि थापना । ज्ञाता धर्म कथा संचार ॥१॥ प्र० ॥ अष्टापद गोयम जश् । करजोमी जिणे स्तुव्या
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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