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________________ श्री सोल सतियोनी सज्झायो. १६७ ॥ त्रूटक॥ पवित्र बेटी रूपें रंना सुनना नामे सती। बुधदास बोधे कपट श्रावक थर परणी गुणवती ॥ पोषह सामायिक जैनधर्मे देवगुरु राती रहे । महा मिथ्यातणी नणंद सासू अहो निशे महर वहे ॥१॥ चाल॥-एहर्बुजाणीजोकही। बुधदासे निज नारी॥ मुनि आवे जल व्होरवा। बंदर जिम मंजारी ॥त्रूटक॥ बिन ताके तेम सासू पुत्रने माता कहे । यतिय साथे वह विलसे एम शोना किम रहे ॥ पुत्र बोले मात म कहो कनक मल कुण नाखए । सतीश मांहे ए शिरोमणी दोषी भूषण दाखए॥२॥चाल ॥ पारण काजे सती घरें। कोश् मुनिश्राव्यो तप गाढे॥ आहार देतां ऋषि लोचने । तृण जीने करी काढे ॥ ॥ त्रूटक ॥ काढतां तृण शीश सिंदूर लागे कृषि निलामए । ते देखी सासु वहू करणी पुत्रने देखामए ॥ व्यनिचारिण। निज नारी जाणी प्रेम पतिनो उतरे । सासुए दीध कलंक जाणी सुनता बहु उख धरे ॥३॥ चाल ॥-देहरासरें काउसग रहे । शासन
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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