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श्री एकादश गणधरनो सज्झायो. १६५ गणधर गुण हिय धरोरे (आंकणी)॥ जनम थयो तुंगीया पुर रे। विप्रदत्त सुजात॥ वारुणी दवी उर ऊपनो रे । अश्वनी नक्षत्र विख्यात रे ॥२॥ गण ॥ कोमिन गोत्र शोजाकर रे। गृहपणे वरस बत्रीस रे ॥ अनुक्रमे चारित्र आदर्यो रे। त्रणसें शिष्य सुजगीसरे ॥३॥ गण॥ दश वरस उमथ्थपणेरे ॥ केवलज्ञान वरस सोल रे। नवियण जण प्रतिबूझवे रे । सहु बासठ वरस रंगरोलरे ॥४॥गण ॥ परलोक संशय तसु
वीयो रे। जावीयो वीर जिणंद रे ॥ मेतारज प्रनु गणधरु रे । गणपति शिष्य आणंद रे॥५॥ गण॥ ॥श्री प्रनास गणधर सज्जायम् ॥११॥ (आपेआप संभालिये-ए देशी अथवा भरतरीनी.)
गणधर गुण संथवकरो। नामे मुनि सुप्रनास ॥ वसु संनिवेषे अवतयों। पूगी वंच्छित आस ॥ १ ॥ वीर गणधर सोहे सदारे। पाप पलाये पूर॥ अग्यारम गणधर सूरि। आपे सुख नरपूर ॥२॥ वीर गण ॥