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१६२ श्री एकादश गणधरनी सज्झायो. ॥ श्री मौर्यपुत्र गणधर सफायम् ॥७॥
( हरिकेशी बलिनी-ए देशी.) सत्तम गणधर साधु शिरोमणि । मौर्यपुत्र सु. जाण ॥ मौर्य संनिवेश साहिब । मौर्य विप्र नित नित होइ कल्याण ॥१॥ सुगुण नर सत्तम गणधर सार । नामें नवनिधि संपजे । महावीर शिष्य उदार ॥२॥ सुगुण ॥ (आंकणी) विजयादेवी मा तसु जणणी। नक्षत्र रोहिणी जास ॥ काश्यप गोत्र उत्तम जाणो । पांसठ वरस गृहवास ॥३॥ सुगुण ॥ अउठसे बात्रसुं दीक्षा लीधी। वरस चौद रह्या उमथ्थ ॥सोल वरस केवलपद वास्यो । अनुक्रमे लहेसे परमथ्य ॥४॥ पंचाएं वरस आयु सघलु । देव संशय सफलो कीध॥ मणपति शिष्य गणधर श्म बोले । कार्य सघलां सिक ॥५॥ सुगुण ॥ इति. ॥श्री अकंपित गणधर सज्जायम् ॥॥
(माइ तुंमीयागिरि शिखर सोहे-ए देशो.) अहम गणधर अति अनुफ्म । अकंपित मुनि