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श्री उत्तराध्ययनसूत्रनी सज्झायो. ॥ साधु ॥३॥ नाबाहुना सीस चिहुं जिम । सीत परीसह सहवोजी॥ ताप सहे अरहन्नगनी परे। संजम निश्चल रहेवोजी ॥ साधु० ॥ ४ ॥ मांस मसा सहे जितशत्रुनी परे । चित्त विचार न मोलेजी ॥ तेह साधु सरिखा कुण जगमांहि । अवर कहीजे तोलेजी॥ साधुण ॥५॥ सहे अचेल सोमदेव अरति । पुर्खन बोधि जिम टालीजेजी ॥ थूलिना जिम नारि परीसह । सही शील शुद्ध पालेजी ॥ साधु ॥६॥ चरीया सहे साधु संगम जिम । निसिहिया कुरुदत्त परेजी ॥ शल्या सोमदत्त अहियासे । पुहतो उत्तम शिवपुरेजी ॥ साधु० ॥ ॥ सहे आक्रोस अर्जुनमाली जिम । वध खंधक ऋषि गुणियणजी ॥ बलज जिम याचना परीसह । सहे अलान ऋषि ढंढणजी ॥साधु ॥७॥ कालवेस जिम मुनि रोगे न मोले। न तणा मुख संगेजी ॥ मल सुनंद जीवे जे मन सह्यो । तिम न करे मुनि रंगेजी साधु ॥ ए ॥ श्रावक जिम न करे सतकारे । मनमाहि बहु रीसजी ॥ प्रज्ञा कालिकसूरि सहे जिम