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________________ श्री अढार पापस्थान परिहारनी सज्झायो. १४३ । ० ॥ वाद कलह द्वेषें करें । बोले पर अपवाद ॥ द्वेष चयो कुलवट तजे । लोपे मर्थ्याद ॥ ६ ॥ द्वेष० ॥ आशातन जिननी करी । ऋषि हत्या कीध । गोसाले वश द्वेषने । घणा पातक लीध ॥ ७ ॥ द्वेषण ॥ एक संसारी प्राणीया। जां हुई अंतकाल ॥ तां लग द्वेष तजे नही । पमे नरक जंजाल ॥ ८ ॥ द्वेष० ॥ - धिकारी बे गामना । तसु चरित्र संचार ॥ द्वेष थकी मन नवि वल्युं । जभ्या बहुल संसार ॥ ए ॥ द्वेष० ॥ सासू नादें द्वेषथी । मन गूंथी काल || सती सुनजाने दियुं । जू मोटुं श्राल ॥ १० ॥ द्वेष० ॥ द्वेषी वात घणी करे । माने अजाण ॥ चतुर विचारे संजली | केलवण विन्नाय ॥११॥ द्वेष० ॥ क्रोध मान बेहु मिली । हुवे द्वेष निदान ॥ तेथी जीव रुले घं । नवि पामे ज्ञान ॥ १२ ॥ द्वेष० ॥ श्म जाण । मन वश करी । परिहरिये द्वेष ॥ श्रीह्म कहे एं मनें । सुख लहे विशेष ॥ १३ ॥ द्वेष ॥ इति ॥
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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