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________________ १०६ श्री ज्ञातामुत्रनी सज्झायो. अन्यासके, तेतली ने घरे ते वधे एः- वधे यौवन रूपें मीय मंत्रिने मनें पोटिला, अनिष्ट गढी हूइ कर्मे या चिंते मन जला ॥दांनसाला दांन दीजे, सुव्रता संगति ज, साधवी पासे धर्म सांजलि, संयम लेवा ऊमही || ३ || मंत्रीय २ पूढयो एम कहे ए, संयमश् पालीय सारके, देवतणी ऋद्धि जो लहोए जोगवो ‍ सुख विस्तारके, मंत्रिय‍ पूढयो एम कहे ए: - लहो जो तुम्हे देवता जव, तुम्हें हुं प्रतिबोधवो, ए वाच दे चारित्र लेश, संयम पालेा जिनवो ॥ पोटिला - का काल करीने, देवना सुख अनुजवे, कनकरथ रा काल कीधे कनकध्वजराज जोगवे ॥ ४ ॥ मातानें वयणें मंत्रिए, मानेएर बहु परे रायके, - वतां ऊठे सण दीए ए । पगसात‍ पुढें जायके, मातानें वयणें मंत्रिनें ए:- मंत्रि वाध्यो राय मांन्यो, देव पोटिल अनुदिनें; बूऊवें मंत्रिराज गर्वे, देवनें कां नवि मने ॥ तो तेहनें प्रतिबोधवाने, राय ऊपराठोकीयो, तो मंत्रि वामीमांहि पेसी समतारस मन
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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