________________
९८
श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो. समोसर्याए ॥ तेणे काले गणधार, गिरु गौतम सोवन वन तनु दीपतो रे ॥ १॥ श्रावी प्रजुने पासें, देश प्रदक्षणा वांदी पूडे गुरु कन्हें ए॥ मया करी जिनराज नगवन मुऊ कहो, जीव घटेनें किम वधे ए॥ ॥॥ बोले जगगुरु वीर, गौतम पमिवाथी, कृष्ण पदें जिम चंउमाए; दिन प्रति मंगल हानि, जेम अमावासें, अस्त मंगल शशहर थयो ए ॥३॥ एम जे चारित्र लेश, दिन प्रतिहारवे, दशविध यति धर्म प्राणीयोए; खंती गुत्ति बंजचेर, उठा करतो ए इणि विधे आपण' घटे ए॥४॥ वधवानो उपाय गौतम सांजलो, पमिवा शुक्लथी चंडमाए; दिन प्रते वाधे तेज, मंगल पण वाधे, पूनिम पूरो उगमे ए ॥५॥ एम जे चारित्र ले,साधु गुणें वाधे,खंति गुत्ति ए करी दिनप्रतें ए; पूरो जास प्रकाश, दीपे शशि जिम एणीपरे,आपण पुं वधे ए॥६॥ एम सांजलि जिन वाणि, धर्मे उद्यम करो, दिन प्रति चमते जावस्युं ए श्ह लोके जयकार, शिव सुख परनवें, मुनि मेघराज कहे मुदाए ॥ ७॥
इतिश्री ज्ञाता दशमाध्ययन चंद्रमान्याय सझायम् ॥१०॥