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________________ हिसाब करनेवाला तू एकबार स्वयं का हिसाब करके तो देख। तूने प्रेम अधिक किया या संघर्ष अधिक किया? उत्तर देने वाला पचास वर्ष के अंदर का हो तो कहेगा, प्रेम करनेवाले से प्रेम करता हूँ और झगडा करनेवाले से झगडा करता हूँ। उम्र के ६०वर्ष के बाद वाला कहता है, जिंदगीभर स्वयं का तो कुछ सोचा ही नहीं। सबका किया ही किया। पहले छोटे छोटे भाई-बहनों का किया फिर बच्चों का किया। मैं ने तो सबका किया परंतु सबने मेरे साथ धोखा किया। भगवान ने कहा, अब क्या हुआ? प्रभु ! मुझसे झूठ सहन नहीं होता है। इसलिए मैं बोल पडता हूँ तो बूरा लगता है। गेहूँ के कंकर की तरह उठाकर बाहर फेंक देते हैं। जैसे कोई रिस्ता ही नहीं है। भगवान महावीर के कान में कीले ठोके,चंडकौशिक ने डंक मारा, संगम ने अनेक उपसर्ग किए क्या यह सब सही थे? हम सब इसे गलत ठहराते है। साधना में रत प्रभु के साथ इन नासमझ जीवों का नासमझ आचरण असहनीय लगता है। परमात्मा कहते हैं, मुझे यह सब गलत चलता है। स्वयं गलत नहीं होना चाहिए। प्रत्येक स्वयं ने स्वयं की गलती को सुधारना है। जगत् के लोगों को मिथ्या ठहरा देने से हम सच्चे नहीं हो सकते। किसी के पूछने की देर है, बस हम तैयार बैठे हैं। जगत् को मिथ्या मानने की जगह हम लोगों को मिथ्या मानते है। जगत् के नाथ मिलनेपर सत्य की पहचान होती है। परमात्मा अब तीसरा प्रश्न पूछते हैं, तू यहाँ क्यों आया है, क्या करके आया है और क्या करना चाहता है? ऐसा सुनते हुए कईबार गलतफहमी होती है। परमात्मा के प्रश्न को लोग हमारा प्रश्न समझकर उत्तर देते है। कई लोग कहते है, अब और कर भी क्या सकते है? आप दीक्षा देदो तो ले लेंगे वैसे भी घरवालों को भारी पड़ रहे है। बैठा दो आप पाटपर। आता कुछ नहीं है मांगलिक दे देंगे। पाट की शोभा बढाएंगे। आप गोचरी लाकर देंगे तो खाकर पात्रे धो देंगे। क्या मजाक समझ रखा हैं आपने इस पथ का? बहुत महत्त्व है इस पाट का। ज्ञान आना नहीं आना, होशियार होना नहीं होना महत्त्वपूर्ण नहीं है। पाट का अपना महत्त्व होता है। पाट की शोभा हम नहीं बढाते हैं, पाट हमारी शोभा बढाता हैं। जानते हो आप? यह पाट किसकी हैं? क्या देखते हो आप? किस डोनर का नाम लिखा हैं इसपर? कितने ही नाम लिखे जाएंगे, मिटाए जाएंगे परंतु इसपर इस काल में शास्वत नाम दिया गया हैं सुधर्मा स्वामी का। यह सुधर्मा स्वामी की पाट हैं। आपने कभी वीरविक्रम की बात सुनी होगी। जब ओटेपर बैठते थे तो ज्ञान की चर्चा करते थे और नीचे उतरते थे तो ज्ञान गायब। इसीतरह इस पाटपर बैठने से सुधर्मा स्वामी का प्रभाव प्रारंभ होता है। इस पाट के चमत्कार तो पाटपर बैठनेवाले ही जानते हैं। परमात्मा पूछते हैं, यहाँ तू क्यों आया हैं, क्या चाहिए तुझे? प्रभु! पूरे जगत् को नाथ मानकर जीता था। अब समझ में आया मैं स्वयं अनाथ हूँ। केवलमात्र आपही मेरे नाथ हो। आपसे उत्तम जगत् में कुछ भी नहीं है। अब सोचो कि हम भगवान को अपना सबकुछ समर्पित कर दे। वास्तव में हम भगवान ऐसा कह देवे कि, आप ही एक मेरे नाथ हो, आप ही मेरे तरण तारणहार हो जगत् के उत्तमोत्तम पदार्थों में सर्वश्रेष्ठ केवलमात्र आप हो। ऐसा सबकुछ कह देने पर परमात्मा कितने खुश हो जाते होंगे न। हम हमारे सारे संबंधो को छोड़ देते है केवलमात्र प्रभु आप ही मेरे सर्वस्व हो
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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