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परमात्मा के हम ऐसा नहीं कर सकते है। सभा में किसी ने पूछा तो क्या भगवान बनने का ठेका इन्होंने ही ले रखा है ? गौतम स्वामी ने कहा नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। स्वयं भगवान ने ही एकबार कहा था कि तीर्थंकर बनने के सिर्फ बीस ही कारण है। बीस में से किसी एक कारण की भी साधना करने से तीर्थंकरत्त्व प्राप्त होता है।
अरिहंत सिद्ध पवयण गुरुथेर बहुस्सुएतवस्सिसु, वच्छलयायतेसिं अभिक्खणाणोवओगे । दंसण विणय आवस्सएय सिलवएनिरईयाए, खणलव तवचियाए वेयावच्चे समाहिए । अपुव्वणाणगहणे सुयभत्तिपवयणे पभावणया, एएहिं करणेहिं तित्थयरत्तं लहइ जीवो ||
इन बीस कारणों से तीर्थंकरत्त्व की प्राप्ति होती है।
तीर्थ का तीसरा कारण है हेतुता । जगत के कल्याण करने के हेतु से जो तीर्थ का निर्माण करते हैं उन्हें तीर्थंकर कहते है। सब के भीतर स्व को प्रगट करते हैं । स्व में सत् को प्रगट करते हैं । तीर्थ अर्थात् सद्धर्म की स्थापना। परमात्मा के शासन का हेतु है अबोधता से मुक्त करना। हम कोई भी क्रिया करते है थक जाते है। थकान उतारने हम हिलस्टेशन जाते हैं। देवलाली भी तो आप लोग विश्राम करने आते है। यहाॅ दस बजे प्रवचन शुरु होता है तो भी कुछ लोग दोपहर को आकर कहते है, हमें सुबह वाला प्रवचन सुनना है ओर कुछ सुनावे उन्हें मंजुर नहीं । सुबह का प्रवचन वहीं प्रवचन दोपहर कैसे हो सकता है? उनसे ऐसा कहने पर कहते है, हम यहाँ विश्राम करने आये है । तो हम कहते है फिर विश्राम करों । तो कहते है, हम सो-सो कर भी थक गए है। कितना आश्चर्य है थकते है तो सोते है यह तो ठीक है परंतु जो सो-सो कर भी थकते है, उसका क्या करना ?
एकबार मैं सुबह की गौचरी के लिए किसी के यहाँ गयी थी। सुबह ७-७ : ३० का समय होगा। साथ भैया जी ने दरवाजा नोक किया। दरवाजा खुलते ही आँख मसलते हुए एक भाई ने स्टील की पतीली बाहर निकाली यह समझकर कि दूधवाला भैया दूध देने आया है। कैसे समझाए इनको दूध देने नहीं दूध लेने आए हैं। फिर सामने देखकर शरमा गए। दोनों को समझ नही आ रहा था कि सोरी कौन कहें? मैं या भाईसाहब? भीतर से धर्मपत्नी ने आकर कहाँ, पधारो आहार पानीका लाभ दो। मैं ने कहा, मुझे पता नहीं था कि आप लेट उठते है तो मैं नहीं आती। बहन ने कहा, ऐसी कोई बात नहीं ऊठ तो हम जल्दी जाते हैं पर आज ही लेट हुआ । सहज ही मैं ने पूछ लिया कब ऊठते है आप? सुबह होते ही। सुबह कब होती है? बच्चे ने का स्कुलबस आनेपर। भाई साहब ने कहा पेपर आनेपर । बहन ने कहा दूधवाले के आनेपर । मुझे आश्चर्य हुआ। एक घर में तीन सुबह कैसे हो सकती है ! जागरण क्या होता है? ऊठ कर क्या करना चाहिए ? जिससे तन, मन, धन और पर्यावरण, वातावरण सब शुद्ध रहे इसकी कला शिखाता है इसीकारण चतुर्विधसंघ को तीर्थ कहते है। तीर्थ पदार्थों का यथचित प्रतिपादन करता है। प्रत्येक तीर्थिक के आत्मा में उसका वास होने से ये चैतसिक है। वस्तुतः परमात्मा का तीर्थ "सव्वपावप्पणासणो” सर्व कर्मों से मुक्त करने में सहायक होते है।
तीर्थ हमें सुबह कब होती है ?
आइए इस मंगलमय तीर्थ में
यहाँ है विषय कषायरुप शत्रुओंका अंत करनेवाले अरिहंत । यहाँ है भव-भय-भ्रम और भ्रमण का अंत करनेवाले भगवंत ।
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