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ध्यान में लाइए बैसाख महिना है, ऋझुबालुका नदी का तट है। सर्व जीव के कल्याण के कर्णधार शासन के सूत्रधार ने गोदोहासन में बैठकर ऐसा कुछ किया कि रुलते पत्थर जैसा जीव तट पर आया। भगवान में से निकलते हुये शुभ्रपरमाणुओं ने हममें भगवतसत्ता की आदि कर दी। यात्रा की शुरुआत हो गई। अनादि की खोज की आदि हो गई। हमारा एक बहुत बडा आवरण टूट गया। शास्त्र कहते हैं भगवान के घातिकर्मोंका क्षय हो गया। भगवान के कर्मोंका क्षय हुआ हमारे आत्मधर्म का उद्घाटन हुआ। उद्घाटन करनेवाले तो रिबन काट के चले जाते हैं। परमात्मा उद्घाटन करके हमेशा हमेशा के लिए हमारी विकास यात्रा के आईगराणं बन जाते हैं।
नमोत्थुणं एक आगम है। आगम का अर्थ पता है न आपको ? आगम शब्दकी दो व्याख्याएँ प्रसिध्ध है। १) आ अर्थात आत्मा और गम अर्थात जानना । जो आत्मा के जानने में सहायता करे उसे आगम कहतें है। २) दूसरी व्याख्या है आ अर्थात आप्त पुरुष, अर्थात तीर्थंकर भगवान। ग अर्थात गणधर भगवान और म अर्थात मुनि भगवान। तीर्थंकर भगवानने जो कहा उसे गणधरों ने गूंथा और मुनि भगवंतोने उसे प्रगट किया। इस त्रिपदीय योजना को आगम कहते हैं। आगम का काम आदि और अंत करना है। अरिहंताणं, भगवंताणं और आईगराणं ये तीनों पद मिलकर आगमकी इस योजना में सफलता प्रदान करते है। स्वभाव के दो प्रकार है। एक सहज और दूसरा उपाधिप्रेरित। आत्मा का चैतन्य यह उसका सहज अनादि स्वभाव है। इसका कभी नाश नहीं होता। यह स्वाभाविकता शाश्वत है अत: इसकी कोई आदि नहीं होती। स्वभाव का दूसका प्रकार कर्माणुं संयोग से संबंधित होने के कारण उपाधिप्रेरित है। इस उपाधिप्रेरित को समाधि प्रेरित करने की आदि हमें करनी है। उपाधि प्रेरित संयोग दुःख का कारण है और समाधि प्रेरित संयोग सुख का कारण है।
भवका दुःख है जन्ममरण। भयकाअंत है आत्मविलोपन। भ्रमकाअंत है भ्रांति।
भव भूतकाल की प्रकृति है। भय वर्तमानकी विकृति है।
भ्रम भविष्य की संयुक्ति है। नियुक्ति है। उपाधिप्रेरित का अंत करना होता है और समाधि प्रेरित की आदि करनी होती है। दुःख का अंत होने पर सुख की आदि अपने आप हो जाती है। जैसे अंधकार के जाने पर उजाला अपने आप होता है। हमारा प्रश्न है कि परमात्मा आदि किस चीज की करते है ? गणधर भगवंत इसका अद्भुत समाधान प्रस्तुत करते हुए कहते है परमात्मा हमारे अनंत समाधि सुख की आदि करते हैं, क्योंकि सुख अनेक हैं पर उन सुखों का अंत होता है। हमें अनंत सुख की खोज है और अनंत सुख की आदि है इस लिए उस सुख का नाम सादिअनंत समाधि सुख है। सुख के कितने प्रकार आपने सुने होगे। आपने सुख के अनेक प्रदार्थों का उपभोग किया होगा। हमने उन पदार्थों में समाधि को खोजा होगा। कुछ समय के लिए हमने उस में से समाधि पायी भी होगी। थके हुए हो और बैठ गए तो समाधि, भूख लगी हो और भोजन मिल जाए तो समाधि, गर्मी होती हो तो पंखा/ए.सी. चल पडे तो समाधि, इतना तो ठीक है पर सुबह उठते ही पेट साफ हो गया तो भी कहते हैं, हाश! शांति हो गई। पेट खाली था और भर गया तो शांति थी। आज खाली हो गया तो शांति हैं। हमारी सुख शांति और समाधि निरंतर बदलती रहती हैं। संसार के पदार्थों के गॅरंटी कार्ड हम संभालकर रखते हैं। पदार्थ के खराब हो जानेपर हम कंपनी में उसे ले जाते हैं और सुधारने
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