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________________ नमोत्थुणं बोहिदयाणं परमात्मा जो हमें देते हैं वह सत् हैं। परमात्मा का सत् जो हममें प्रगट होता हैं वह सिद्धांत हैं। सिद्धांत का हम स्वीकार करते हैं वह बोध हैं। बोध हममें प्रगट होता हैं वह बोधि हैं। बोध अनेक बार मिल सकता हैं क्योंकि बोध में शोध जारी हैं। बोधि एक ही बार मिलती हैं क्योंकि बोधि देती हैं सिद्धि। मग्गदयाणं में मार्ग के शोध का प्रयास होता हैं। सरणदयाणं में स्वयं की शोध संपन्न होती हैं। जीवदयाणं में स्वयं के बोध की शुरुआत होती हैं। बोहिदयाणं में बोध बोधि में परिणमित हो जाता हैं। बोधि अर्थात् धर्म की प्राप्ति। जीवदयाणं अस्तित्त्व में लाता हैं। अस्तित्त्व तो होता है परंतु अस्तित्त्व को नहीं पहचानने के कारण हम स्वयं के प्रति अनजान और अबोध रहते हैं। जीवदयाणं में अस्तित्त्व की पहचान होती हैं। बोहिदयाणं में अस्तित्त्व की अनुभूति होती हैं। जीवदयाणं अस्तित्त्व की थीयरी हैं तो बोहिदयाणं अस्तित्त्व का पॅक्टीकल हैं। अस्तित्त्व का पॅक्टीकल अर्थात् साक्षीभाव में आना। शरणदयाणं में हम परमात्मा के सामने प्रगट होते हैं। बोहिदयाणं में हमारा स्वयं हम स्वयं में प्रगट होता हैं। बोधि अर्थात् स्वयं की उपलब्धि। स्वयं को पा लेना, स्वयं में स्वयं का प्रगट हो जाना। शरणदयाणं में स्वयं को परमात्मा के चरणों में समर्पित कर देते हैं। बोहिदयाणं में स्वयं स्वयं में समर्पित हो जाता हैं। इसी बोधि का दान परमात्मा हममें करते हैं। उत्तरवाचाल के विशाल देवालय मंडप में अकेला चंडकौशिक रहता था। उस अकेले साप में ही बोधि प्रगट करने के लिए परमात्मा महावीर वहाँ पहुंचते हैं। बोध दिया - संबुज्झह संबुज्झह किं न बुज्झह। पहले एकबार संबुज्झह कहकर परमात्मा रुक गए। जब परिणाम प्रगट नहीं हुआ तो दूसरीबार कहा संबुज्झह। इसबार भी परिणाम प्रगट नहीं होनेपर परमात्मा प्रश्न करते हैं क्यों नहीं जाग्रत हो रहा? बेचारा चंडकौशिक संबुज्झह का अर्थ क्या जाने? परमात्माने झकजोर कहा - संबोहि खलु पेच्च दुल्लहा। संबोधि बारबार पाना दुर्लभ हैं। तिर्यंच के रुप में रहा हुआ चंडकौशिक देवगति को प्राप्त हो गया। परमात्मा ने कहा वत्स ! एकबार संबोधिलेले वह बार बार पाना दुर्लभ हैं। संबोधिलेले सिद्धि सुलभ हैं। संबोधि देकर प्रभु वहाँ से लौट गए। सिद्धितक खडे न रहे। संबोधि स्वीकार लेनेपर सिद्धि का इंतजार नहीं करना पडता। सिद्धि सहज सुलभ हो जाती हैं। राजश्री का त्याग कर संयम अंगीकार कर पुनश्च संसार जीवन में लौट जाने की भावना वाले मेघमुनि में कौनसे शुभ परिणाम प्रगट हो गए कि वे संयम में स्थिर होकर सिद्धि मार्ग के यात्रिबन गए। ये शुभ परिणाम संबोधि हैं। परमात्मा की कृपा से अबोधि संबोधि में परिणमित हो जाती हैं। वरना कमठ के लकडियों में निकले साप में ऐसे कौनसे शुभ परिणाम प्रगट हो गए कि उसने अत्यंत वैभवसंपन्न धरणेन्द्र देव का अवतार पाया। 165
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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