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जैनदर्शन :वैज्ञानिक दृष्टिसे
27 के वेग से गति करती है, केवल उसकी कम्प-संख्या (फ्रीकवन्सी) या तो बहुत ज्यादा होती है या बहुत कम । इसी कारण से प्रत्येक तरंग दृश्यमान नहीं होती है। ___ इस प्रकार वर्तमान पृथ्वी पर जीवन व्यतीत करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के शरीर पर नाना प्रकार की संख्यातीत विद्युत् - चुम्बकीय तरंगें पड़ती है । यदि हम इन सबको सजीव मान लें तो फिर जीना ही मुश्किल हो जाएगा ।
एक बात और है कि प्रत्येक सजीव पदार्थ अपनी शारीरिक और भौतिक क्षमतानुसार, अपनी आध्यात्मिक उन्नति-अनुसार, अपने शरीर में-से नियत प्रकार की, नियत कंप-संख्यावाली तरंगें छोड़ता है और जिनकी कंप-संख्या, तरंग-लम्बाई आदि उनकी मनःस्थितियों के (शान्ति, भय, क्रोध, उद्वेग, शोक, इत्यादि) अनुसार बदलती रहती है । इस सिद्धान्त के आधार पर ही विज्ञान की टेलीपैथी नामक शाखा विकसित हुई है । पश्चिम में इसे ले कर कई खोजें हुई है । अनुसंधान अभी जारी है।
इस चर्चा का सार मात्र यह है कि प्रकाश के रूप में विद्युत्-चुम्बकीय तरंगें छोड़ना अग्निकायिक जीव का लक्षण है; अतः सभी प्रकार के प्रकाश में जीव है, ऐसा मानना उपयुक्त नहीं है।
इस सब का अर्थ यह नहीं है कि मैं साधु-समाज को दीपक के प्रकाश का उपयोग करने की छूट देता हूँ, या ऐसी छूट लेने के लिए मैंने यह लेख लिखा है; वस्तुत साधु या साध्वी स्वयं तो बत्ती नहीं जला सकते; किन्तु अन्य किसी के पास भी बत्ती जलाना उपयुक्त नहीं है और इससे भी बढ़ कर यदि कोई बत्ती जलाता हो या बुझाता हो तो उसे भी अच्छा नहीं मानना अर्थात् अनुमोदन करना भी उपयुक्त नहीं है । साथ ही उपाश्रय के निकटवर्ती किसी गृहस्थ के घर की जलायी हुई बत्ती या सड़क-पर-जलती नगरपालिका की बत्ती की सहायता से अपना कोई कार्य साधु न करें; क्योंकि ऐसा करने पर उसकी अनुमोदना हो जाती है । यद्यपि यह बत्ती साधु के लिए या साधु के कहने से नहीं की गयी तथापि उसके उपयोग (इस्तेमाल) से पाप लगता ही है, इसे प्रायः सभी मानते हैं; अतः ऐसी बत्ती का इस्तेमाल करने की छूट लेने का कोई प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता । यहाँ तो केवल जैन आगम और विज्ञान के आधार पर 'प्रकाश सजीव है अथवा नहीं' इस प्रश्न के समाधान का एक विनम्र प्रयास किया गया है ।
(सन्दर्भ : दशवैकालिक सूत्र, हारिभद्रीयवृत्ति; तत्त्वार्थसूत्र टीका, अध्याय-2, टीकाकारसिद्धसेन गणि । आचारांग-टीका, शीलाकाचार्य; सेनप्रश्न; संदेह दोलावली प्रकरण; टेकस्ट बुक ऑफ क्वाण्टम मिकेनिक्स, पी. एम. मैथ्युस, के. वेंकटेशन )
[तीर्थकर : दिसम्बर, 88]