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जैनदर्शन :वैज्ञानिक दृष्टिसे
- स्कन्ध के भेद पुद्गल की व्याख्या करते समय स्कन्ध के छह भेद किये गये हैं : बादर-बादर, बादर, बादर-सूक्ष्म, सूक्ष्म-बादर, सूक्ष्म तथा सूक्ष्म-सूक्ष्म ।
जैन धर्मानुसार प्रकाश को बादर-सूक्ष्म तथा वायु को सूक्ष्म-बादर श्रेणी में रखा गया है, यानी वायु के कण प्रकाश के कणों की तुलना में सूक्ष्म होते हैं। लेकिन विज्ञान के अनुसार ऐसा नहीं है । प्रकाश के कण निश्चित रूप से वायु के कणों की तुलना में सूक्ष्म होते हैं, अतः स्कन्ध के भेदों को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है । जैनधर्मानुसार जिस पुद्गल स्कन्ध का छेदन-भेदन किया जा सके तथा जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक न ले जाया जा सके, लेकिन नेत्रों द्वारा देखा जा सके, उसे बादर-सूक्ष्म कहते हैं, तथा जिस पुद्गल स्कन्ध का छेदन-भेदन न किया जा सके, जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक न ले जाया जा सके, जिसे नेत्रों द्वारा भी न देखा जा सके, लेकिन चार अन्य इन्द्रियों (स्पर्शन, रसना, घ्राण और कर्ण) से अनुभव किया जा सके उसे सूक्ष्म-बादर कहते हैं ।
(तीर्थंकर : मई,87) . 1.(ब) समाधान : डॉ. अनिलकुमार के प्रश्नों का
आज के युग में विज्ञान मनुष्य-जीवन का आवश्यक अंग बन गया है। इसलिए हर मनुष्य किसी भी प्रश्न को वैज्ञानिक ढंग से ही देखता है और वैज्ञानिक पद्धति से ही उसका उत्तर पाने का प्रयत्न करता है । यद्यपि जैन शास्त्रों में बहुत कुछ वैज्ञानिक सिद्धान्त पाये जाते हैं, तथापि वर्तमान में बहुत से प्रश्न ऐसे हैं जिन पर आधुनिक विज्ञान और जैन शास्त्रों में स्पष्ट भिन्नता दिखायी पड़ती है। . _ 'तीर्थंकर' के मई-1987 के अंक में 'जैनधर्म : विज्ञान की कसौटी' पर लेख में डॉ. अनिलकुमार जैन ने ऐसी ही कुछ भिन्नताएँ दिखलायी हैं और तत्संबन्धी प्रश्न प्रस्तुत किये हैं । ___ यहाँ हम ऐसे ही कुछ प्रश्नों की चर्चा करेंगे ।
जैन पुराणों में, कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्यजी (वि. सं. 1145-1229 )द्वारा विरचित 'त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र' का अनुठा स्थान है । इसके परिशिष्ट पर्व' में बहुत-से ऐतिहासिक सन्दर्भ उपलब्ध होते हैं । इसी ग्रन्थ में उन्होंने 63 महापुरुषों के जीवन का विस्तृत वर्णन किया है । इन सब के शरीर-की-ऊँचाई (अवगाहना) भी जैन शास्त्रों में उपलब्ध है। ___ इसी ग्रन्थ के अनुसार भगवान् श्री ऋषभदेव की अवगाहना 500 धनुष्य थी । एक धनुष्य चार हाथ के बराबर होता है और एक हाथ को कम-से-कम डेढ़ फुट के बराबर मान लेने पर भगवान् आदिनाथ की अवगाहना 3000 फूट होती है । इसी प्रकार भगवान् शान्तिनाथ के शरीरकी-ऊंचाई 40 धनुष्य अर्थात् 240 फूट थी । भगवान् महावीर की अवगाहना 7 हाथ अर्थात् 10 ॥ फुट थी । हम इन सब बातों को आज सत्य नहीं मानते हैं; लेकिन हमें एक बात अच्छी तरह ध्यान में रखनी चाहिये कि विज्ञान का कोई भी सिद्धान्त अपरिवर्तनीय नहीं है । आज ज़ो