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________________ सूत्रकृताने भाषानुवादसहिते चतुर्थाध्ययने द्वितीयोदेशके: गाथा १३ स्त्रीपरिज्ञाध्ययनम् अन्वयार्थ - (पूयफलं तंबोलयं) सोपारी, पान ( सुईसुत्तगं च जाणीहि ) तथा सुई - सूत लाओ ( मोयमेहाए कोसं च) पेसाब करने के लिए पात्र (सुप्पुक्खलगं च ) सूप और ऊखली (खारगालणं च ) खार गलाने का बर्तन शीघ्र लाकर दो । भावार्थ - स्त्री कहती है कि- हे प्रियतम ! पान, सोपारी, सूई-सूत, पेसाब करने के लिए बर्तन, सूप, एवं खार गलाने का बर्तन लाकर दो । ऊखली टीका - पूगफलं प्रतीतं 'ताम्बूलं' नागवल्लीदलं तथा सूचीं च सूत्रं च सूच्यर्थं वा सूत्रं 'जानीहि ' ददस्वेति, तथा 'कोशम्' इति वारकादिभाजनं तत् मोचमेहाय समाहर तत्र मोचः - प्रस्रवणं कायिकेत्यर्थ: तेन मेह: - सेचनं तदर्थं भाजनं ढौकय, एतदुक्तं भवति - बहिर्गमनं कर्तुमहमसमर्था रात्रौ भयाद्, अतो मम यथा रात्रौ बहिर्गमनं न भवति तथा कुरु, एतच्चान्यस्याप्यधमतमकर्तव्यस्योपलक्षणं द्रष्टव्यं तथा 'शूर्पं' तन्दुलादिशोधनं तथोदूखलं तथा किञ्चन क्षारस्यसर्ज्जिकादेर्गालनकमित्येवमादिकमुपकरणं सर्वमप्यानयेति ॥१२॥ किञ्चान्यत् - टीकार्थ - पूगीफल प्रसिद्ध है, सोपारी को पूगीफल कहते हैं, नागरवेल के पत्ते को ताम्बूल (पान) कहते हैं तथा सूई और सूता अथवा सूई में डालकर सीने के लिए सूता मुझको दो । तथा कोश नाम पेशाब करने के पात्र का है वह पात्र मुझको लाकर दीजिए । आशय यह है कि मैं रात में भय के कारण बाहर जाने के लिए समर्थ नहीं हूँ इसलिए रात में मुझको जिस प्रकार बाहर जाना न पड़े ऐसा करो । यह दूसरे भी छोटे कामों का अधमतम कार्य का उपलक्षण है तथा चावल वगैरह को शोधन करने के लिए सूप को शूर्प कहते हैं तथा ऊखली और साजी गलाने का पात्र यह सब उपकरण मुझको लाकर दीजिए ||१२|| चंदालगं च करगं च, वच्चघरं च आउसो ! खणाहि । सरपाययं च जायाए, गोरहगं च सामणेराए ।।१३।। छाया - चन्दालकं च करकं वर्चोगृहं च आयुष्मन् । खन । शरपातं च जाताय, गोरथकं श्रामणये ॥ अन्वायार्थ - (आउसो ) हे आयुष्मन् । (चंदालगं) देवता का पूजन करने के लिए ताम्र भाजन (करगं च ) जल अथवा मधु रखने का पात्र ( वच्चघरं ) पाखाना (खणाहि ) यह सब मेरे लिए बना दो। (जायाए सरपाययं च ) अपने पुत्र को खेलने के लिए एक धनुष् ला दो । (सामणेराए गोरहगं च ) श्रमण पुत्र अर्थात् तुम्हारे पुत्र को गाड़ी में वहन करने के लिए एक बैल लाओ । भावार्थ - स्त्री कहती है कि- हे प्रियतम ! देवता का पूजन करने के लिए तांबा का पात्र तथा जल अथवा मद्य रखने का पात्र मुझको ला दो । मेरे लिए पाखाना खोदा दो अपने पुत्र को खेलने के लिए एक धनुष् ला दो । तथा तीन वर्ष का एक बैल ला दो जो अपने पुत्र को गाड़ी में वहन करेगा । टीका - 'चन्दालकम्' इति देवतार्चनिकाद्यर्थं ताम्रमयं भाजनं, एतच्च मथुरायां चन्दालकत्वेन प्रतीतमिति, तथा 'करको' जलाधारो मदिराभाजनं वा तदानयेति क्रिया, तथा 'वर्चोगृहं' पुरीषोत्सर्गस्थानं तदायुष्मन् ! मदर्थं 'खन' संस्कुरु तथा शरा - इषवः पात्यन्ते - क्षिप्यन्ते येन तच्छरपातं धनुः तत् 'जाताय' मत्पुत्राय कृते ढौकय, तथा 'गोरहगति त्रिहायणं बलीवर्दं च ढौकयेति, 'सामणेराए'त्ति श्रमणस्यापत्य श्रामणिस्तस्मै श्रमणपुत्राय त्वत्पुत्राय गन्त्र्यादिकृते भविष्यतीति ॥ १३ ॥ तथा टीकार्थ देवता का पूजन करने के लिए ताम्र का भाजन ला दो । मथुरा में इस पात्र को 'चन्दालक' कहते हैं तथा जल के आधार को करक कहते हैं, अथवा मद्य के भाजन को करक कहते हैं, वह मुझको ला दीजिए । तथा जिसमें स्थंडिल जाते हैं, उस स्थान को वर्चोगृह कहते हैं, वह गृह हे आयुष्मन् ! मेरे लिए खोदकर बना दीजिए । जिस पर रखकर बाण फेंके जाते हैं, उसे शरपात कहते हैं, शरपात धनुष् का नाम है, वह धनुष् अपने पुत्र के खेलने के लिए ला दो । तथा तीन वर्ष का बैल लाओ जो तुम्हारे सन्तान की गाड़ी खींचने का काम करेगा ||१३|| 1. श्रामणिपुत्राय प्र० । 2. स्वपुत्राय प्र० । २८४ -
SR No.032699
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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