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________________ सूत्रकृताङ्गे भाषानुवादसहिते तृतीयाध्ययने द्वितीयोद्देशः गाथा ४-५ बच्ची है तथा ये तुम्हारे अपने सहोदर भाई हैं। तूं क्यों हमें छोड़ रहा है ? टीका - हे 'तात!' पुत्र ! पिता 'ते' तव 'स्थविरो' वृद्धः 'शतातीकः, 'स्वसा' च भगिनी तव 'क्षुल्लिका' लघ्वी अप्राप्तयौवना 'इमा' पुरोवर्त्तिनी प्रत्यक्षेति, तथा भ्रातरः 'ते' तव स्वका' निजास्तात! 'सोदरा' एकोदराः किमित्यस्मान् परित्यजसीति ||३|| तथा - टीकार्थ - हे तात! हे पुत्र ! तुम्हारे पिता सौ वर्ष से भी अधिक अवस्थावाले वृद्ध हैं और तुम्हारी यह बहिन भी अभी युवावस्था को प्राप्त नहीं है किन्तु छोटी है । देखो यह तुम्हारे आगे प्रत्यक्ष खड़ी है । तुम्हारे अपने भाई भी सहोदर हैं फिर तूं हमें क्यों छोड़ रहा है || ३ || मायरं पियरं पोस, एवं लोगो भविस्सति । एवं खु लोइयं ताय!, जे पालंति य मायरं 11811 छाया - - मातरं पितरं पोषयं, एवं लोको भविष्यति । एवं खलु लौकिकं तात । ये पालयन्ति च मातरम् ॥ अन्वयार्थ - (तात!) हे तात! ( मायरं पियरं) माता और पिता का ( पोस ) पोषण करो ( एवं ) माता पिता के पोषण करने से ही (लोगो) परलोक (भविस्सति) होगा । (ताय!) हे तात ! ( एवं ) यही (खु) निश्चय (लोइयं) लोकाचार है कि ( मायरं ) माता को ( पालंति ) लोग पालन करते हैं । - उपसर्गाधिकारः भावार्थ - हे पुत्र ! अपने माता-पिता का पालन करो माता-पिता के पालन करने से ही तुम्हारा परलोक सुधरेगा। जगत का यही आचार है और इसीलिए लोग अपने माता पिता का पालन करते हैं । टीका 'मायरमि’त्यादि, ‘मातरं' जननीं तथा पितरं जनयितारं 'पुषाण' बिभृहि, एवं च कृते तवेहलोकः परलोकश्च भविष्यति, तातेदमेव 'लौकिकं' लोकाचीर्णम्, अयमेव लौकिकः पन्था यदुत प्रतिपालनमिति, तथा चोक्तम् - वृद्धयोर्मातापित्रोः गुरवो यत्र पूज्यन्ते, यत्र धान्यं सुसंस्कृतम् । अदन्तकलहो यत्र तत्र शक्र! वसाम्यहम् ||१|| इति ॥४॥ अपि च - - टीकार्थ हे पुत्र ! तूं अपने माता और पिता का पालन कर । माता-पिता के पालन करने से ही तुम्हारा यह लोक सुधरेगा । हे तात! अपने वृद्ध माता-पिता का पालन करना ही लोक प्रसिद्ध मार्ग है । अत एव कहा है । 'गुरवो यत्र पूज्यन्ते' अर्थात् जहां गुरु जनों की पूजा होती है और अन्न पवित्रता के साथ बनाया जाता है तथा जहां वाक्कलह नहीं होता है । हे इन्द्र ! वहाँ निवास करता हूँ ||४|| और भी उत्तरा महुरुल्लावा, पुत्ता ते तात ! खुड्डया | भारिया ते णवा तात !, मा सा अन्नं जणं गमे 11411 - छाया - उत्तराः मधुरालापाः पुत्रास्ते तात । क्षुद्रकाः । भार्य्या ते नवा तात। मा साऽन्यं जनं गच्छेत् ॥ अन्वयार्थ ( तात !) - हे तात ! (ते पुत्ता) तुम्हारे पुत्र, (उत्तरा) उत्तरोत्तर जन्मे हुए (महुरुल्लावा) मधुर भाषी ( खुइया) और छोटे हैं। (तात !) हे तात ! (ते भारिया) तुम्हारी पत्नी (णवा) नवयौवना है (सा) वह (अन्नं) दूसरे (जणं) जन के पास (मा गमे) न चली जाय । भावार्थ - हे तात ! एक-एक कर के आगे पीछे जन्मे हुए तुम्हारे लड़के मधुरभाषी और अभी छोटे हैं । तुम्हारी स्त्री भी नवयौवना है । वह किसी दूसरे के पास न चली जाय । 1. वर्षशतमानः १९७
SR No.032699
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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