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________________ सूत्रकृताङ्गेभाषानुवादसहिते द्वितीयाध्ययने तृतीयोद्देशकः गाथा २० अनित्यताप्रतिपादकाधिकारः यह विद्वानों ने कहा है, इसलिए ज्ञानादि संपन्न पुरुष को यह सोचना चाहिए कि उत्कृष्ट अर्धपुद्गल परावर्तकाल तक फिर बोध प्राप्त करना दुर्लभ है। बोध की दुर्लभता का मुनि सदा ध्यान रखें । यहाँ “अहियासए" यह पाठान्तर भी पाया जाता है, इसका अर्थ यह है कि- साधु, उत्पन्न परीषहों को अच्छी तरह सहन करे । यह सिद्धांत, राग-द्वेष को जीतनेवाले नाभिपुत्र श्री ऋषभदेवजी ने अष्टापद पर्वत पर अपने पुत्रों से कहा था । तथा दूसरे जिनेश्वरों ने भी यही कहा है ॥१९॥ - एतदाह - - फिर सूत्रकार यही कहते हैं - अभविंसु पुरावि 'भिक्खुवो आएसावि भवंति सुव्वता । एयाई गुणाई आहु ते कासवस्स अणुधम्मचारिणो ॥२०॥ छाया - अभूवन् पुराऽपि भिक्षवः । आगामिनश्च भविष्यन्ति सुव्रताः । एतान् गुणान् भाहुस्ते काश्यपस्यानुधर्मचारिणः ॥ व्याकरण - (पुरा) (अवि) अव्यय (भिक्खुवो) कर्ता (अभविंसु) क्रिया (आएसा) सुव्रत का विशेषण (सुब्वया) कर्ता (अवि) अव्यय (भवंति) क्रिया (कासवस्स) सम्बन्ध षष्ठ्यन्त पद (अणुधम्मचारिणो) कर्ता (एयाई) गुण का विशेषण (गुणाई) कर्म (आहु) क्रिया । अन्वयार्थ - (भिक्खुवो) हे साधुओं ! (पुरावि) पूर्वकाल में (अभविंसु) जो सर्वज्ञ हो चुके है और (आएसावि) भविष्य काल में (भवंति) जो होंगे (ते सुव्वता) उन सुव्रत पुरुषों ने (एयाई गुणाई आहु) इन्हीं गुणों को मोक्ष का साधन (आहु) कहा है (कासवस्स अणुधम्मचारिणो) तथा भगवान् ऋषभदेवजी और भगवान् महावीर स्वामी के अनुयायियों ने भी यही कहा है। भावार्थ - जो तीर्थकर पहले हो चुके हैं और जो भविष्य काल में होंगे, उन सभी सुव्रत पुरुषों ने तथा भगवान् ऋषभदेव स्वामी और भगवान महावीर स्वामी के अनुयायियों ने भी इन्हीं गुणों को मोक्ष का साधक बताया है। टीका - हे भिक्षवः साधवः । सर्वज्ञः स्वशिष्यानेवमामन्त्रयति येऽभवन अतिक्रान्ताः जिनाः सर्वज्ञाः आएसावित्ति. आगमिष्याश्च ये भविष्यन्ति तान विशिनष्टि-सव्रताः शोभनव्रताः अनेनेदमक्तं भवति तेषामपि जिनत्वं सुव्रतत्वादेवायातमिति ते सर्वेऽप्येतान् अनन्तरोदितान् गुणान् आहुः अभिहितवन्तः, नाऽत्र सर्वज्ञानां कश्चिन्मतभेद इत्युक्तं भवति । ते च काश्यपस्य ऋषभस्वामिनो वर्द्धमानस्वामिनो वा सर्वेऽप्यनुचीर्णधर्मचारिण इति । अनेन च सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रात्मक एक एव मोक्षमार्ग इत्यावेदितं भवतीति ॥२०॥ टीकार्थ - सर्वज्ञ पुरुष, अपने शिष्यों को संबोधन करते हुए कहते हैं कि हे भिक्षुओं ! जो सर्वज्ञ पूर्व काल में हो चुके हैं और भविष्य काल में जो सर्वज्ञ होंगे, वे सभी पुरुष सुव्रत हैं । भाव यह है कि उन पुरुषों को जो सर्वज्ञता प्राप्त हुई थी, वह उत्तम व्रत को पालन करने से ही हुई थी। उन सर्वज्ञ पुरुषों ने पूर्वोक्त गुणों को ही मोक्ष का साधन कहा है । इस विषय में सर्वज्ञ पुरुषों का कोई मतभेद नहीं है, यह आशय है। वे सभी सर्वज्ञ काश्यपगोत्री श्री ऋषभदेव स्वामी और भगवान् महावीर स्वामी के द्वारा आचरण किये हुए धर्म का ही आचरण करनेवाले थे। इससे यह बताया जाता है कि सम्यग् ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही मोक्ष का मार्ग है, दूसरा नहीं।।२०।। - अभिहितांश्च गुणानुद्देशत आह - - पूर्वोक्त गुणों का सूत्रकार अब नाम बताते हैं - तिविहेण वि पाण मा हणे, आयहिते अणियाण संवुडे । 1. भिक्खवो ! चू.। 2. भविंसु । १७६
SR No.032699
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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