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________________ सूत्रकृताङ्गेभाषानुवादसहिते प्रथमाध्ययने द्वितीयोद्देशके गाथा १५-१६ परसमयवक्तव्यतायामज्ञानवादाधिकारः प्रवृत्तत्वात्सत्यानि तस्मादज्ञानमेव श्रेयः किं ज्ञानपरिकल्पनयेति, एतदेव दर्शयति-सर्वस्मिन्नपि लोके ये प्राणाः प्राणिनो न ते किञ्चनापि सम्यगपेतवाचं (च्यं) जानन्तीति विदन्तीति ॥१४।। ____टीकार्थ - अज्ञानवादियों का कहना है कि- यद्यपि कोई ब्राह्मण विशेष तथा परिव्राजक, ये सभी हेय और उपादेय को प्रकट करनेवाले अपने-अपने ज्ञान को बतलाते हैं । (जिसके द्वारा पदार्थ जाना जाता है, उसे ज्ञान कहते हैं ।) परन्तु उनका ज्ञान परस्पर विरोधी होने के कारण सत्य नहीं है, इसलिए अज्ञान ही श्रेष्ठ है । ज्ञान की कल्पना की कोई आवश्यकता नहीं है। यही सूत्रकार दिखलाते हैं- सब लोक में जितने प्राणी हैं, वे कुछ भी ठीक-ठीक नहीं जानते हैं ॥१४॥ S - यदपि तेषां गुरुपारम्पर्येण ज्ञानमायातं तदपि छिन्नमूलत्वादवितथं न भवतीति दृष्टान्तद्वारेण दर्शयितुमाह - उन ब्राह्मण और श्रमणों का गुरुपरम्परा से जो ज्ञान चला आ रहा है, वह भी मूल रहित होने के कारण सत्य नहीं हो सकता है । अज्ञानवादी के इस कथन को दृष्टान्त द्वारा प्रदर्शित करने के लिए सूत्रकार कहते हैंमिलक्खू अमिलक्खूस्स, जहा वुत्ताणुभासए। ण हेउं से विजाणाइ, भासिअंतऽणुभासए ॥१५॥ छाया - म्लेच्छोऽम्लेच्छस्य यथोक्ताऽनुभाषकः । न हेतुं स विजानाति, भाषितन्त्वनुभाषते ॥ व्याकरण - (मिलक्खू) कर्ता (अमिलक्खूस्स) सम्बन्ध बोधकषष्ठ्यन्त (जहा) अव्यय (वुत्ताणुभासए) कर्ता का विशेषण (ण) अव्यय (हेउ) कर्म (से) कर्ता का बोधक सर्वनाम (विजाणाइ) क्रिया (भासिअं) कर्म (अणुभासए) क्रिया । अन्वयार्थ - (जहा) जैसे (मिलक्खू) म्लेच्छ पुरुष (अमिलक्खूस्स) अम्लेच्छ यानी आर्य पुरुष के (वुत्ताणुभासए) कथन का अनुवाद करता है (से) वह (हेउं) कारण को (न विजाणाइ) नहीं जानता है (त) किन्तु (भासियं) उसके भाषण का (अणुभासए) अनुवाद मात्र करता भावार्थ - जैसे म्लेच्छ पुरुष, आर्य्य पुरुष के कथन का अनुवाद करता है । वह उस भाषण का निमित्त नहीं जानता है किन्तु भाषण का अनुवाद मात्र करता है। टीका - यथा म्लेच्छ आर्यभाषाऽनभिज्ञः अम्लेच्छस्य आर्य्यस्य म्लेच्छभाषानभिज्ञस्य यद् भाषितं तद् अनुभाषते, अनुवदति केवलं, न सम्यक् तदभिप्रायं वेत्ति, यथाऽनया विवक्षयाऽनेन भाषितमिति । न च हेतुं निमित्तं निश्चयेनाऽसौ म्लेच्छस्तद्भाषितस्य जानाति केवलं परमार्थशून्यं तद्भाषितमेवानुभाषत इति ॥१५।। टीकार्थ - जैसे आर्यभाषा को न जाननेवाला म्लेच्छ पुरुष, म्लेच्छभाषा को न जाननेवाले अम्लेच्छ यानी आर्य्य पुरुष के भाषण का केवल अनुवाद करता है। परन्तु उसने इस विवक्षा से यह कहा है, यह उसका अभिप्राय वह अच्छी तरह से नहीं जानता है । वह म्लेच्छ, आर्य पुरुष के भाषण का कारण निश्चय रूप से नहीं जानता है, केवल अर्थ-ज्ञान शून्य उसके भाषण का अनुवाद मात्र करता है ।।१५।। - एवं दृष्टान्तं प्रदर्श्य दार्टान्तिकं योजयितुमाह - - इस प्रकार अज्ञानवादियों के पक्ष का दृष्टान्त बताकर अब उसकी दार्टान्त में योजना करने के लिए शास्त्रकार कहते हैं - एवमन्नाणिया नाणं, वयंतावि सयं सयं । निच्छयत्थं न याणंति, मिलक्खुव्व अबोहिया ॥१६॥ छाया - एवमज्ञानिकाः ज्ञानं वदन्तोऽपि स्वकं स्वकम् । निश्चयार्थं न जानन्ति, म्लेच्छा इवाबोधिकाः ॥
SR No.032699
Book TitleSutrakritanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size15 MB
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